श्रीवेंङक्टाचलमाहात्म्यसारः | Shrivenktachalmahatmyasya Bhag-ii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
770
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)४ श्रीवेडटाचलंमाहांत्ये
तथ पहुंचे मुनि श्रीनिवास पहं, पाती दियो थमाई।
बोले श्रेनिवास तेहि औसर, छुनिये श्रीधुनिराई ।
श्रीनिवास उत्तर लिखि दीने, यहि विधिसों हरपाई |
श्रीमान तव पाती पढ़िके, महा मोद् तन छाई ॥
हम व्याहन हित तबहि ऐपहैं,, जब शुभ लगन धराई
ले पाती तब शुकजी पहुंचे, तप अकाश घर जाई ॥
पुनि हरि सुरगन कहं युलूवाये, पढ़ि पत्नी सो आये ।
सब मिलि सब्बन गोठ किये तहं, निज आदेश सुनाये ॥
सब कहं उचित कार्य हरि सौंप्यो, लगे करन हरषाते।
यह शुभ चरित हर्पि जे गावें, सो सुर लोक सिघाते ॥
विधि शिवसों हरि कियो मंत्रणा, तब कुबेर बुलवाये ।
यथा उचित धन राशि हेतु तथ, सब प्रचन्ध. करवाये ॥
जद्वथ तरू पुष्करिणी तीरे, ऋण पत्रो लिखि दोने ।
साक्षी भये तोनिहुं तेहि थल, सो धनेश ले लीने ॥
पिसकमो पुर साजे सब विधि, को करि सके बड़ाई।
सजि बरात प्रद्ध चले गर॒इ चढ़ि, बाजन विविध बजाई ॥|
नगर छदार पर भह अगवानो; पुरजन सब हरपाने।
घेहटेशा घर दूलह लखि के, दुम्पति हृदय जुड़ाने ॥
जस कछ हे विवाह फो रीति; सकल भूप करवाये।
दायज दिये घरनि नहि जाई, विदा किये घर आये॥
लखि अगस्तको आश्रम मंज्ुल, तहुूँ पद मास पिताई।
जप अकाश तय भयो रोग बह, समाचार छुनि पाई॥
पत्नी साथ गरुड़ चढ़ि पहुंचे; नेकु बिलम नहिं छाई।
ससुरहिं अधिक रोगमें देख्यो, श्रीवेक्षद पिलखाई ॥
सुत्त बसुदान हमदटिं तजि ताता. करते कहां पयाना ।
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