श्रीमद्भागवद्गीता | Shreemad Bhagwat Geeta

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Shreemad Bhagwat Geeta  by खेमराज श्री कृष्णदास - Khemraj Shri Krishnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अबम भाषाटीफादाहिता । (१७) आधार्यबिपे अपणे गूढद्ेषकूं बोधन करता मया । इतने कहणेंकरिके संजयनें ता घृवराष्ट्रके ्रति यह अर्थ बोधव करा। पधर्मक्षेत्रविवे आध्र होईकेभी जिन तुम्हारे दुर्गोषनादिक पृत्रोंकूं अपणे आचार्यविषे भी ऐसी द्वेपबुद्धि हुई है ते दुर्योधनादिक ता धर्मक्षेत्रेक अ्रमावर्त पश्चात्तापकूं प्राप्त होइके तिन पांडवोऊ युद्ध करेंतें विना ही राज्य देदेवैंगे या प्रकारकी सम्भावना तुमनें कदाचित्‌ भी नहीं करणी ॥ ३ ॥ ' सब शूरवीरोंविपे अप्सिद्ध ऐसा जो ठुपदपुत्र है ता एक दुपदपुजकरिके व्यूहस्वनायुक्त करी हुई जो यह पांडवोकी सेवा है वा पांडवोकी सेनाऊ हम स्वोधिषे कोई एक साधारण शूरवीरं भी जय करि लेवैगा | तुम विन पांडवेकी सेना किस वासते भय करते हों ऐसी द्ोणाचार्यकी शेकाके हुए तो दुर्योधन राजा ( अन्न श्राः ) इत्यादिक तीन *ठोकोंकरिके तिन पांडवीकी सेनाविपे स्थित शूरवीरोंके नाम वणेन करे हैं- अन्न शरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा यधि ॥ युयुधानो विराटश्व हृपदश्ध महारथः ॥' ४॥ धृष्टकेतश्नेकितानः काशिराजश्व॒ वीर्यवान्‌ ॥ पुरुजित्कुंतिमोजश्व शैव्यश्र नरपुंगवः ॥ ९॥ सुधामन्युश्व विक्रांत उत्तमोजाश्व वीयबान्‌ ॥ सोभकदो द्रोपदियाश्व सर्वे एवं महारथाः ॥ ६ ॥ ( पदच्छेदः ) ओर । झराः । महेष्वॉसाः । भीमांर्जनसमाः । बुंधि | युयुँधानः । विरोटः। च॑ | ढुपंद:। चे। महाँरथः ॥ ४ ॥ धृष्ठेकेतु:। चेकितानः । कारिरोजः रत । पुरुँनित । न्तिभोजः | वें । शेब्यः । चें। न है +॥ ५ ॥ युधमन्य: कह । उत्तमोजीः । च्‌ं | वायवात्‌ । तोड़ हो देयाः । चें। संवें। एवं। महारथाः ॥ ६ ॥ « ् रे




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