श्रृंगार शतक | Shringar Shatak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
612
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)# शतकत्रय #
गण क्ष्क्श्त्त्क़्दता [ १५ ह|
वैद्यजी ने अपने अनुवादों को उपयोगी बनाने के लिये केवल
कद्दानियों को हो नहीं अपनाया है, घरन उस्ताद जोक, महाकबि
ग़ालिव, दाग, मियाँ नज्जीर, महात्मा तुलसीदास, सुन्दरदास,
कबीर, आदि की रचनाओं से भी सहायता ली है; गुलिस्ताँ,
वोस्ताँ, महाभारत, कुमार सम्भव, किराताज्जुनीय, रघुवंश,
हितोपदेश, पंचतंत्र, आदि ग्रन्थों से भी सुन्दर-सुन्दर वाक्य उद्धृत
किये हैं, इनके सिवा सेकड़ों विदेशी-बिद्वानों के वचनों से भी
काम चलाया है; और ये सब मौक्े-ब-मौक़े ऐसे सज रहे है, जैसे
हरी-भरी वाटिका में मनोहर पुष्प। फलतः अनुवाद और भी
सुन्दर, मनोहर, रोचक और हृदयम्राह्दी हो गए हैं। परन्तु इनकी
यह ,खूबी भी नेहरूजी की दृष्टि में छोटा नहीं, बहुत मोटा दोष
है। और तो और, आपकी समम में यह भी दोष है, कि अनु:
वादक महोदय को १६१६ में परिचित मित्रों और नातेदारों की
नाराजगी से बेरांग्य-सा हो गया था और आप 'बिराग्य शतक”
पढ़ा करते थे, इसी से आप ने बैराग्य शतक का अलुवाद भी
कर डाला। भला परिचित मित्रों तथा नातेदारों की नाराजगी
और वैराग्य शतक के अनुवाद का क्या सम्बन्ध ? अनुवादक
महोदय “वबैराग्य-शतक” पढ़ते थे, तो उनकी आत्मा ठप्त होती थी--
उससे आनन्द प्राप्त होता था, इसीलिए उन्होंने सोचा, कि यदि
ओर लोग भी मेरे इस आनन्द में शरीक दो सकें, तो अच्छा
उस समय हिन्द्री में “वैराग्य शतक” के अच्छे अनुवाद का
अभाव था ही; बस, वैद्यजी ने यह काय्य कर डाला । भत्ता
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