श्रीमद् भागवत गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र | Shrimad Bhagavat Geeta Rahasya Athva Karmayoga Shastra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
47 MB
कुल पष्ठ :
890
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हि गीतारह॒स्य अथवा कर्मयोगशास्तर ।
लाचारी है। मूल ग्रन्य मराठी में है, में खयं महाराष्ट्र हूँ, मराठी ही
मेरी मातृभाषा है, महाराष्ट्र देश के केन्द्रस्थल पूने में ही यह अनुवाद छापा
गया है और में हिन्दी का कोई ' धुरंधर ' छेखक भी नहीं हूं। ऐसी अवस्था
में, यदि इस अन्य में उक्त दोष न मिल, तो बहुत आश्रय होगा |
यद्यपि मराठी रहत्यः को हिन्दी पोशाक पहना कर सवाद्ल सुन्दर स्प्से
हिन्दी पाठकों के उत्सुक हृदयों में प्रवेश कराने का यत्व किया गया है, और
ऐसे महत््वपूण विषय को समझाने के लिये उन सब साधनों की सहायता छी
गई है कि जो हिन्दी-साहित्य-संसार में प्रचलित हैं; फिर भी स्मरण रहे कि
यह केवल अनुवाद ही है-इसमें वह तेज नहीं आा सकता कि जो मूल ग्रन्थ
में है। गीता के संस्कृत 'छोकों के मराठी अनुवाद के विषय में खय महात्मा
तिलक ने उपोद्धात ( पृष्ठ ५९८ ) में यह लिखा हैः--- स्मरण रहे कि,
अनुवाद आखिर अनुवाद ही है। हमने अपने अनुवाद में गीता के सरल,
खुले और प्रधान अर्थ को छे आने का प्रयत्न किया है सही; परल्तु संस्कृत
शब्दों में ओर विशेषतः भगवान् की प्रेमयुक्त, रसीछी, व्यापक और क्षण-
क्षण में नई राचि उत्पन्न करनेवाली वाणी में रक्षणा से अनेक व्यंग्याथ उत्पन्न
फरने का जो साम्य है, उसे ज़रा भी न घठा-बढ़ा कर, दूसरे शब्दों में
ज्यों का त्यों झलका देना असम्भव है...। ”” ठीक यही वात महात्मा तिलक
के अन्य के इस हिन्दी अनुवाद के विषय में कही जा सकती है।..
एक तो विषय तात्तविक, दूसरे गम्भीर, और फिर महात्मा तिक की वह
ओजखिनी, व्यापक एवं बिकट भाषा कि जिसके सर्म को ठौक ठीक समझ
लेना कोई साधारण वात नहीं है। इन हुहरी-तिहरी कठिनाइयों के कारण
यदि मेरी वाक्य-सचना कहीं कठिन हो गई हो, दुरूह हो गई हो, या अशुद्ध
भी हो गई हो, तो उसके लिये सहृदय पाठक मुझे क्षमा करें। ऐसे ग्रन्थ के
अनुवाद में किन किन कठिनाइयों से साम्हना करना पड़ता है और अपनी
छत्तेता का ल्याग कर पराघीनता के किन किन नियमों से बैँध जाना होता
इसका अनुभव वे सहानुभूतिशीछ पाठक और लेखक ही कर सकते हैँ कि
जिन्हेंने इस ओर कभी ध्यान दिया है।
राष्ट्रमापा हिन्दी को इस बात का अभिमान है कि वह महात्मा तिंलक के
भीतारहस्य-सम्बन्धी विचारों को
अनुवाद रूप में उस समय पाठकों को भेट
५ सदी हे जब कि और किसी भी भाषा का अनुवाद प्रकाशित नहीं
&भा;--यथपि दो-एक अनुवाद तैयार थे। इससे, आशा है कि, . हिन्दी
प्रेमी अवश्य प्रसन्न होंगे। 00500,
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