संस्कृत वाड्मय खंड १ | Sanskrit Vaadmay Khand 1

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Sanskrit Vaadmay Khand 1  by नरहरि द्वारकादास परीख - Narahari Dvarakadas Parikh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रमाण० प्र०,.., वेद ] ७ भागवत को छोड़ दिया जाय ! जब कि-उसमें यत्र-तत्र सर्वत्र बेद्कि रहस्य ही भरा हुआ है, पद-पद पर उत्तमशछोक परब्रह्म का यशोगान किया गया है । आरीवल्लभाचाय ने मारतीय प्रमाण-परिशीलन की इस त्रुटि को दूर किया ओर नवीत दृष्टतिकोश से भागवत को प्रमाण-कोटि में ला बठाया | आपने वेद, गीता,ब्रह्मसूत्र इन तीन, शब्द्‌-प्रमाण भूत ग्रन्थों के साथ भागवत को चोथा प्रमाण ग्रन्थ माना, और किसी भी सिद्धान्त को स्थिर करने के पूर्व उसे चारों प्रमाणों की एक वाक््यता से परखा | प्रमाण-चतुश्चच की पद्धति में उन्होंने उत्तरोत्तर को पूर्व-पूवे-सम्देह-वारक माना । वेद में सहसा बुद्धिमान्य से होने वाले सन्देह के निरसनार्थ श्री गीता, गीता के सन्देह-अपाकरणार्थ बह्मसूत्र, ब्रह्मसूत्र में उत्यित सन्देह की निवृत्ति या स्पष्टीकरण के लिये श्रीभागवत को प्रमाण माना और कहा कि:-- जैसा भागवत निगम का सार है, उसी प्रकार वह निःशेष संशयों का निरासक है, ओर उसकी रचना ही एतदथ हुई हे । (१ ) वेद स्वरूप परिचय--- साधारणतया विद! शब्द का अथ ज्ञान है। यह विद'शब्द विद _ धातु से बना है वेद को निगम भी कहते हैं, जिसका तातये:-- “नितरां गमयति ब्रह्म बोधयति इति परमोपनिषन्तिगमः” *-ऐसा होता हे छन्दों और चरणों से युक्त मन्त्र को ऋक्‌' कहते हैं, इसका दूसरा पर्याय ऋचा' भी है। गुप्ताथ का अभिव्यंजक मन्त्र! कहलाता हे। देव- स्तुति अथवा तत्सम्बन्धी किसी अनुष्ान में प्रयुक्त होने वाले अर्थ का स्मरण कराने वाले वाक्य को भी भमन्‍्त्र' कहते हैं। इस प्रकार वेद में ऋचा अथवा मन्त्रों दरा अनन्त गंभीर लोकिक अलौकिक सभी विषयों का वर्णन है, जिनमें अनन्त ज्ञानराशि भरी हुई है । १. वेद के सम्बन्ध में कहा है-- रूपाणाम वलोके चक्षुरिवान्यन्न कारण हृष्ठम । तद्दददृष्टावगतौ वेद वदन्यों न वेदको-हेतु: | (शब्दार्थ चि०) २. [ भा० प्र० १,१ सुबो० ] ्झ खि




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