जैन व्रत विधान संग्रह | Jain Vrat Vidhan Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
179
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ जैन धत विपान सप्रद ३3
उपयास शा लक्षण
कयायविष्यास्स्मत्यागो. यत्र जिधायते।
उपयास सर विड्षेयों शेप लघनक पिदु'॥
भापार्ध--क्पाय शिपप्र और छषारभ का सकल्यप्रयक्र त्याग तो उप
परत है, शेष को लंघन सममया चाहिये)
विशेष--द्भण, क्षण, काल, भार ये अनुशयर शपनी शक्ति देखकर
हनुम, मन्म शअ्रथया जयतय या ठीय समझे सौ घर 1
उपयास के दिन भी थ्री निनेन्द्र पूजन फरने की आता
प्रातः प्रोत्याय त्तत हत्या तात्कालिर लियाएपम् 1
निर्वत्तपेधयोत.. जिपूजा.. धरासुकडच्ये ॥
आवाथ--प्रमात हे उतकर ताव्वतिर शीचनिव्रत्ति आराहि सर
कियाओं वो करे प्राशुक श्रथत्त् भरखदित शुद्ध अरशद यो से आपतार्था में
कही हुई पिच के आपुसार की जिनेद्ध/य वा ण्जन करे)
सियों को भी पूजन व त्रताचरणादि +रने फा उल्लेख
क्पित्याले गते कन्या श्रासाय जिनमदिर्म् ।
सपया मदती चम्ुमनोवादायशंसित ॥
आवक्मतसयुक्रा वमूधुम्ताध्य कन््यका']
कमादिग्रतसकीर्णा. शीलागपरिभूषिता ॥
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मायाथ--४न तीना कन््याओं ने आपक प्रत धारण वरके क्षमारि
>श घम और शील बत घास्ण किया, बुछ समय पद उन्दोंने किनिमटिर
में जाकर सन घंचन फाय की शुद्धि पृपके भी जिनेन्द्र भगयानू थी डी
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गृदीतर्गधपुष्पादिभार्थना. सपरिच्छदा।
अधैकदा अग्रामैषा प्रातरेय जिनालयम् ॥
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