जैन व्रत विधान संग्रह | Jain Vrat Vidhan Sangrah

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Jain Vrat Vidhan Sangrah by बाबूलाल जैन - Babulal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ जैन धत विपान सप्रद ३3 उपयास शा लक्षण कयायविष्यास्स्मत्यागो. यत्र जिधायते। उपयास सर विड्षेयों शेप लघनक पिदु'॥ भापार्ध--क्पाय शिपप्र और छषारभ का सकल्यप्रयक्र त्याग तो उप परत है, शेष को लंघन सममया चाहिये) विशेष--द्भण, क्षण, काल, भार ये अनुशयर शपनी शक्ति देखकर हनुम, मन्म शअ्रथया जयतय या ठीय समझे सौ घर 1 उपयास के दिन भी थ्री निनेन्द्र पूजन फरने की आता प्रातः प्रोत्याय त्तत हत्या तात्कालिर लियाएपम्‌ 1 निर्वत्तपेधयोत.. जिपूजा.. धरासुकडच्ये ॥ आवाथ--प्रमात हे उतकर ताव्वतिर शीचनिव्रत्ति आराहि सर कियाओं वो करे प्राशुक श्रथत्त्‌ भरखदित शुद्ध अरशद यो से आपतार्था में कही हुई पिच के आपुसार की जिनेद्ध/य वा ण्जन करे) सियों को भी पूजन व त्रताचरणादि +रने फा उल्लेख क्पित्याले गते कन्या श्रासाय जिनमदिर्म्‌ । सपया मदती चम्ुमनोवादायशंसित ॥ आवक्मतसयुक्रा वमूधुम्ताध्य कन्‍्यका'] कमादिग्रतसकीर्णा. शीलागपरिभूषिता ॥ +-सौतमचरिये मायाथ--४न तीना कन्‍्याओं ने आपक प्रत धारण वरके क्षमारि >श घम और शील बत घास्ण किया, बुछ समय पद उन्दोंने किनिमटिर में जाकर सन घंचन फाय की शुद्धि पृपके भी जिनेन्द्र भगयानू थी डी पूछ पी 1 < गृदीतर्गधपुष्पादिभार्थना. सपरिच्छदा। अधैकदा अग्रामैषा प्रातरेय जिनालयम्‌ ॥ कस कं थृ




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