भक्त नरसिंह मेहता | Bhakt Narsingh Mehta

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Bhakt Narsingh Mehta  by मंगल - Mangal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[६ ] चख्ज्रिसे की जा सकती है। इसी बातको दृष्टिमें रखकर हमने युजरातके मक्तशिरोमणि नरसिंह मेहताका चरित्र-चित्रण करनेका प्रयास किया है | पर्तु हमें मय है कि इस बीसबीं शताब्दिके तथाकथित सम्य और उन्नत समाजको, जो विधि-निषेघके बन्धनोंकों शिथिल करके व्यक्तिगत खातन्तय प्राप्त करना ही परम पुरुषार्थ समझता है तथा ईश्वर और धर्मको मूख छोगोंको फँसा रखनेके लिये की गयी कल्पना मानकर इनको संसारसे सदाके छिये उठा देना चाहता है, यह प्राय: ४०० वर्ष पहलेके एक मक्तका जीवन- चरित्र अग्रासब्लिक ही प्रतीत होगा | इतना ही नहीं, उसकी दष्टिमें इस चरित्रिकी तमाम घटनाएँ निर्थंक, कपोलकल्पित और अविश्वसनीय साद्म होंगी । वह इस चरित्रकों समाजके लिये अत्यन्त अनिष्टकारी समझेगा । परन्तु हम नम्रतापू्वक उस समाजसे निवेदन करना चाहते हैं कि जिस खातन््यको वह बरेण्य समझता है, जिस बुद्धिके बलछपर वह ईश्वर और धर्मको तिलाझ्ञलि देना' ' चाहता है, वह खतन्त्रता और बुद्धि दोनों ही उसे धोखा दे रहे हैँ । जिस खतन्‍्त्रताको उसने लक्ष्य बनाया है, वह ' वास्तवमें खतन्‍्त्रता नहीं, उच्छूहुलता है और उच्छुद्नछ्ता पतनकी ओर ही ले जाती है, हमें दिन-पर-दिन पराधीनतामें ही जकड़ती जाती भीतिक बुद्धि भी उसीकी सहचरी है और-वही मोहान्धकारसे रहनेके कारण पतनका कारण बनती है] संच्ची खतस्त्रेता




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