मछलियां ठहरे तालाब की | Macchliyan Thehre Taalab Ki

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Macchliyan Thehre Taalab Ki  by श्री हर्ष - Shri Harsh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मासी मां मासी मां से--मौत वृर-दुर भागती है पूरी शताब्दी जीने का इरादा । -ड्रः्खी हैं बेंटे-वहू कब मरेगी आफत --अपमान के जहरीले घूंट पीकर चुपचाप बीते सुख का अहसास टटोलती है--मासी मां ! अचानक खामोशी ओढ़ सो गई मासी मां गला फाड़ रोने लग्रे बेटे-वेटी जोर से पूरा घर दुःखान्त नाटक में डूबा था हँसकर खेलते थे--शिशु अबोध दो मौत से अनजान जानते नहीं क्यों सोई है मासी मां ? बिलख-घिलख वबहुएं मागती है माफी कल तक मरने की करती थी मनोती-- मछलियां ठहरे तालाब की / 27




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