तत्वार्थ श्लोकवर्तिक | Tatvarth Shlokvartik

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तश्वर्थिचिन्तामणिः १७ ब्रान छह प्रकारका है | कोई अवविद्ञान सूर्यश्रकाशके समान अवविज्ञानीके यहा वहां जानेपर भी पाँछे पीछे चढा जाता है | बैते कि अषिक व्युपन्न विद्यानका श्ञान- सर्वत्र उप्तके प्रीछे चछा जाता है, बह अतुगामी है | दूछत अनसुगामी अन्विज्ञान तो अववि्वानीके पौछे पीछे यहा ष सर्वत्र नहीं जाता है, वह्ष द्वी पडा रहता है, जेते कि सन्तुख हो रहे पुरुषके अश्रोंका उत्तर देनेवारे पुरुषके वचन वहा ही क्षेत्र रहे भाते हैं | प्रश्नकत्तों सन्‍्तुख जावे, तब तो उत्तर सूझ जाता है। दूध प्रकारते बुद्धि कार्य नहीं करती है | जनिष्णात विद्ानकी व्युपत्ति खाध्यायकाछो विधाढयमें बनी रहती है | विधाल्यसे बादििर बाजार, शरतुराब्य, मेछा आदियें उसकी बुद्धि कुण्ठित हो जाती है | तीपरी वर्द्धमान अभत्रधि तो वनमें फेछ रदे अधिक सूखे तिनके, पत्तोंमें छगी हुयी अग्निके समान बढ़ती चढ़ी जाती है | पहििली नितनी अवधि उधन्न हुयी थी, उप्तकी अपेक्षा सम्बग्दर्शब, चारित्र, आदि गुणोंकी विशुद्धिके योगते वह बढ़ती हुयी चछी जाती है, जेसे कि संदाचारी, व्यवहायी प्रतिभाशाढी, विदया्थीकी व्युपपत्ति अन्ुदिन बढ़ती चढ़ी जाती है। चौथी हौयमान भव तो तृण आदिके दरव हो चुकनेपर घट रद्दी अग्निशिज्वाके समान जितती उत्पन हुयी थी, उत्तप्ते घटती दी 'भकढ्ी जाती है, जेते कि मन्दष्यवक्षायी, झ्गडाढ्ु, कृतप्र, अप्तदाचारी छात्रक्ी “्युप्पत्ति प्रतिदिन दीन होती जाती है । पांचवीं भवत्यित अवधि जितनी उत्नन्न हुयी थी, उतनी ही बहुत दिनोंतक बनी रहती है। श्रीभकरंकदेवने अवस्थित अवधिका इशन्त ढिछः यानी पुरुष चिहृका दिया है। सो, ऐसा प्रतीत द्वोता है कि जैते भधिक मोटा शरीर हो जानेपर अथवा अधिक पतढा शरीर हो जानेपर मी पुरुष चिह्मों माप्तक्षत वृद्धि या द्वानि नहीं दो जातो है। अपवा घूम भादि ब्ापकदेतुर्मे अपरि जादि साध्योक्ते प्रतिह्ान करानेगें फोई न्यूनवा या अधिकता नहीं दो जाती है | जेते कि फोई मनमोजी, निश्चिन्त, विद्यार्थी बहुत दिनोंतक मी पढ़ते पढाति हुये अपने झानको घढा बढ़ा नहीं पाता है | छट्ठ भनवध्यित अवाधिक्ञान तो सम्पन्दर्शन आदि गुणोंकी द्वानि जोर वृद्धिके योगतें घटता बढ़ता रहता है। अव्यवत्वित बुद्धिवाले, हदाचारी, परिश्रभी, किन्तु क्षणिक उद्देहयवाढ़े, छात्रकी व्युप्पत्ति अनवस्यित रहती हे | इस प्रकार छट मेदबाठा ही अ्रपिज्ञान माना गया है| समीचीन प्रतिपात और अग्रातिपात इन दो भेदोंका इन्हीं ' छह मेडोंमें अन्तमोव कर दिया जाता है। बिजुकौके प्रकाश समान प्रतिपात द्वोनेवाठा प्रतिपाती है। और गुग्रप्रेशीते नहीं गिरनेशछा ज्ञाव अग्रतिपाती है। कठिन रोग, मधपान, तीज भप्तदाचार, बडा मारी कुऊमें, आादिते क्ित्ती छात्रक्ी व्युपत्ति एकदम गिर जाती है | झात्रीय कक्षामें उत्तीर्ण हो जुके छानझो प्रवेशिकाकी पुस्तकें भी विस्मृत हो जाती हैं | तथा कोई कोई तीव क्षयोपशमवाला विधार्थी पहिलेते दी किसी मी श्रेणीमें कमी नहीं गिरता है। उत्तरोत्तर चढ़ता ही चछा जाता है। उपशमश्रेणी और क्षपकषश्रेणौके प्रतिपाती लौर णप्रतिपाती संयमोंके प्ताथ एकार्यपमवायपतस्दस्थ दो जानेते अवधिद्वान मी तैप्ा हो जाता है। अथवा जवधिद्वानका भी साक्षाद्‌ प्रतिपात भप्रतिपात ढगा घकते हो | 9




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