चौसठ कविताएं | Chausath Kavitaen

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Chausath Kavitaen by इन्दु जैन - Indu Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देखा था भोरे ही कुदरा त्तो खुद मेने । वृदे भी प्रसी थी । ओर फिर -- सवसे बडी वात -- यहा सेम जो फूली है 1 | । ९ फरवरी १९५७ चालक कवितार्णे




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