षट्खंडागम सत्प्ररूपणा भाग - 1 | Shat Khandagam Satprarupana Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
530
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)5 45
१, श्री धवछादि सिद्धान्तोके प्रकाशमें आनेका इतिहास
सुना जाता ह कि श्री घयणादि सिद्धान्त अपाको प्रकाशम छाने और उनका उत्तर-
भारतमें पठनपाठनद्वारा प्रचार करनेझा विचार पड़ित ठोडरमठजीऊे समयमें जयपुर और
अजमेरकफी ओरसे प्रारम हुआ था। उऊिंतु कोई भी महान् कार्य सुस्तपादित होनेफे छिये किसी
महान् आत्माकी वाट जोहता रहता है । पम्बईकें दानयीर, परमोपफारी स्व सेठ माणिकचदजी
जे पी का नाम किसने न सुना होगा * आजसे ठपन वर्ष पहले त्रि स १९४० ( सन्
१८८३ ६ ) की पात है । सेठनी सप् छेकर मूडयरिद्रीझी यावाकों गये थे। बहा उन्होंने
गनमयी अतिमाओं और वयछादि सिद्धान्त प्रयाक़ी प्रतियोंके दशन झकिये। सेठ्जीका ध्यान
जितना उन बहुमूल्य प्रतिमाओंझा और गया, उससे ऊहा अग्रिक उन प्रतियोंकी ओर आकर्षित
हुआ | उनकी सूह्म धर्मकक्षक इश्सि यह बात छुपा नहीं रही ।फे उन प्रानियोंके ताडपन्र जी
हो रहे हैं | उन्हाने उस समयके भद्दरफती तथा बहाके पत्तोका ध्यान भी उस ओर दिलाया
और इस यातकी प5ताठ की ।फ्ि क्या कोई उन अनोंकी पट समय मी समता है या नहीं?
पच्चेने उत्तर दिया “हम छोग तो इनका दर्शन पूलन करके ही अपने जन्मों सफछ मानते
हैं । हा, जैनपिद्दी ( श्रवणनेलगुल ) में अम्सरि जारी है, ये इनकों पटना जानते है? | यह
सुनकर सेठनी गभीर जिचारमें पड गये | उस समय इससे अधिक कुठ न कर सके, किंतु उनके
मनमें सिद्धान्त ग्रयोक्रे उद्धारका चिन्ता स्थान कर गई |
यात्रेसि छोटफर सठजीने अपने परम सहयोगा मित्र; सोछापुरनियासी, श्री सेठ हीगाचन्द
नेमचन्दजी जो पत्र लिखा ओर उसम श्री घर्जादि ग्रथोके उद्धाग्फी चिन्ता प्रगट की, तथा स्वय
भी जाकर उक्त अयाके दर्शन करने ओर फिर उद्धारक्रे उपाय सोचनेकी प्रेरणा की। सेठ
माणिऊचदजीकी इस इच्छाफ़ो मान देकर सेठ हीराचदजाने दृसर ही वर्ष, अर्यात् विस
१९४१ ( सन् १८८४ ) में स्वय सूडपिद्राका यात्रा की । वे अपने साथ श्रगणवेलगुल्के पण्डित
अह्सूरि झासत्रीफो भी ले गय । त्रह्मस॒र्जीन उन््ह तथा उपम्बित सजनाऊे श्री वनछ सिद्धान्तफा
मगढछाचरण पढ़कर सुनाया, जिसे सुनकर थे सप्र अनिप्रसत्न हुए। सेठ हीराचदर्जीफे मनमें
सिद्धान्त ग्रवोंकी प्रतिलिपि करानेफी भायना इढ हो गई ओर उठाने अह्मसृरि शार्खासे प्रतित्तिपका
कार अपने हा्थमें ठेनेफा आम्रट क्रिया । बहामे स्वव्कर सेठ हीराचदजी चम्बई आगे और
सेठ मामिरचदजीसे मिछकर उन्होने ग्रयोफा प्रतिछिपि करानेफा विचार पक्का झिया। किन्तु उनके
User Reviews
No Reviews | Add Yours...