ईश्वर और धर्म केवल ढोंग है | Ishwar Aur Dharm Keval Dhong Hai

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Ishwar Aur Dharm Keval Dhong Hai by भजामिशंकर दीक्षित - Bhajamishankar Dikshit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इंश्वर क्या है ९ रण मत | आदम, पत्नी-सहित शेष वृक्षों के फल खाते रहे । लेकिन, , एक दिन अपनी स्त्री के अत्यन्त-आग्रह से विवश होकर उन्होंने उस निपिद्ध-वृत्तष का फल तोड़कर खा लिया। बस फिर क्‍या था? गॉड ने नाराज़ होकर आदम तथा होआ को जमीन पर फेंक दिया ओर उसे इतना क्रोध आया, कि वह अपनी उस अवज्ञा के कारण आदम की सनन्‍्तान को आज्ञ भरी ( 118९779)] 1?0फ्नांई))1967+$ ) श्रननन्‍्त-द्एड दे रहा है | यानी, जितने भी मनुष्य मरे हैं, वे सब नक की भयद्भुर-अग्नि में जलने भेज दिये गये हैं ओर आगे भी भेजे जावेंगे | हाँ, वे लोग अवश्य ही गॉड की इस क्रोधारिनि मं जलने से बच जावेगे, जो उसके सुपत्र इंसामसीह के अनुयायी होंगे ओर जिनको अनन्त-दण्छ से बचाने के लिये इंसा ने अपना रक्त बहाया है, या जिनके पापों के बदले ईसा सूली पर चढ़ गया है। इस विचार और विश्वास में विचारणीय बात यह है, कि केवल्ल एक फल तोड़ लेने से गाँड को इतना भयद्लुर-क्रोध आगया, कि उसने आदम को खरगग से ज़मीन पर फेंक दिया। वाह रे गाँड ओर वाह रे आदम ! यदि हज़रते आदसम भूखे हों ओर हमारे बार से पेदभर खाने को फल तोड़ लें, तब भी हमें इतना क्रोध न आवेगा, कि हम उन्हें ज़मीन पर दे मारें। फिर भत्ता जो गॉड यानी इंश्वर एक फल्न के लिये उनके जीवन-मरण का विचार किये विना उन्‍हें ज़मीन पर फेंक सकता है, वह दयालु विशेषण के योग्य केसे होगया, यह समझ में नहीं आता। हाँ, उसे निर्देश्यों का राजा कहे, तो कोई घुराई नहीं है। आगे चल्नकर, उसकी न्यायग्रियता का “भी जरा नमूना देखिये। पाप करें हज़रते आदस ओर सज़ा पावें हमलोग, जो उनके न-मालूस कितनी पीढ़ी बाद हुए हैं ! ऐसा वढ़िया-इन्साफ़ करनेवाला छ हे




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