महाभारत अनुशासनपर्व | Mahabharat Anushasanaparv

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Mahabharat Anushasanaparv by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय २ | १३ अनशासनपते । (कर न्‍ जन अजमेर +०० लौजजनन-ककीकक+.+ २१ 5 शर्ूसूरश हट तरस श्सूरूरहधशूश धध्ध्ध्श्ध्ध्य्ट्ध्श्श्ध्ध्ध्ध्टध्ध्ध्दड 332935%3%353359%933+%39335<333:3:53+3+353:35333353(02 तामाधचवान्‌ द॒दा तरप्त स्वयम्राचवता खुताम्‌ | ।७99999999999999999999999999999999999999999999999939999999399993999399939999939 399999933933933. व्रए€€€ €€& सुदशानाय विदुषे भायाथ देवरूपिणीम्‌ ॥ २३९ ॥ स गृहस्थाश्रमरतस्तथा सह सुदशनः । कुरुक्ष त्र व सद्राजन्नोघवत्या समन्वितः 1 ४० ॥ गहस्थश्वावजेष्यामि रत्युमित्येव स प्रभो | प्रतिनज्ञामकरोद्धी मान दीप्ततेजा विशाम्पते ॥ ४१॥ लतामथोघवती राजन स पावकसुतो5ब्रवीत । अतिथेः प्रतिकूल ते न कतेव्य कथंचन ॥ ४२ | येन येन च तुष्येत नित्यमंव त्वयाउतिथिः | सर है शह शा अप्यात्मन। प्रदानन न ते काया वेिचारणा ॥| ४३ ॥ एतद्गत मस सदा हृदि संपरिवतते | ग्हस्थानां च सुश्रोणि नातिथेविद्यते परम | ४४ ॥ प्रमाण यादि वासमोरू वचस्ते मम छझोभमने। हद वचनमव्यग्रा हृदि त्व धारये। सदा ॥॥ ४० ॥ निष्क्रान्ते माये कल्याणि तथा सनिहितेष्नधे । नाताथरत$वम्तन्तव्य; प्रश्ताण यद्यह तव न 2००+»-+न २क०-न-क-ा नृग राजाके पितामद ओपघदवान नामके राजा थे, उनके आघवती नाम की कन्या और ओघरथ नामका पूत्र था, ओघवानने स्वयं विद्वान सुदशनके साथ अपनी देवरूपिणी कन्याका विवाद किया । हे महाराज | सुदक्धनने उस ओघदवर्ताके साथ गृहस्थाश्रमम रत होके कुरुक्षेत्रम निवास किया था। दे नरनाथ 1 महातेजखी, धीमान सुदशन गृहस्थ होके सत्युको जय करूंगा एसी ही प्रतिज्ञा करके पलीस बोले, कि तुम मी अतिथियोंके विषयर्म किसी प्रकारसे प्रतिकूल आचरण न करना; श्रतिदिन | 1 ॥ ४५ ॥ नि लीक न ीनन4ब++- तन 3 िननननी ऑजिक.>->०५-०-+बकन-नन+ -+माललननी- जलन टरनअ2अ2गरग2अ#२गरनभ2२त2गगजफरफिनगन-ग-म»भ+3+-+++-+ “न जनी+-झ-न पनानमीनाननाननन-+न >नननन--भ3>े->क लक अतिथि जिप् प्रकार तुम्हारे द्वारा प्रसन्न हो, तुम आत्मप्रदान करके भी उस कार्यकी सिद्ध करना, इस विषयमें कुछ भी विचार न करना | ( ३८-४६ ) है सुश्राणि ! मरे हृदयमें सदा यह व्रत विद्यपान है, कि प्रहस्थ मनुष्योंके निमित्त अतिथिसे बढके और कुछ भी नहीं है | हे शोमने [ दे वाभोरु ! यदि तुम मेरे वचनकी मानो, तो सन्देह* रदित द्ोके सदा हस ही वचनकी हृदयमें धारण करो। दे कल्याणे।| है पापरद्िते! में चाहे घरसे बाहर रहूं, अथवा घरमें ही रहूं, मरा वचन यदि तुम्हँ प्रमाण शासक लए /रपर रस कप धन नस तय कि कर शक किलर की कम कील, स्ध्ध्ध्थ्ध्ध्ध्श्श्ध्ध्ध्ध्ध्ध्ध्€्ध्ध्ध्ध्ध्ध्धद€€€€६3993939339%9353393379953392593399395999+>3+373530




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