गोरा | Gora
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
426
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३३१
पढ़ता था | उस समय दो-दो दिन में भूखो-प्याभी ही बनी रहेती थी ।
तेरे पिता ने मेरे आचार-विचार को छुड़ाने की बहुत चेष्टा की । थे मुझे
साध लेकर ही सब जगह जाते थे | अतः साहब लोग उनको बडी प्रश॒पा
करते थे | अब चुढ़ापे में नौकरो छोड़ देने पर, जब उनके पास पूँच गरवां
जपा हो गया, तो वे कट्टर सदाचारी हिन्दू बन गए हैं। परन्तु मुझसे अय
यह नहीं हो सकता । मेरी सात पीढियो के जो संस्कार एक-एक केरके
उखाड़ डाले गए वे अब फिर से नहीं जम सकते 1'
गोरा--अच्छा, तो पूर्व पुरुषों को बात जाने दो। ये अब
आपत्ति करने के लिए नहीं आयेगे, परम्त, तुम्हें हम लोगों के लिए झुछ
बातें तो माननी ही पड गी। शास्त्र का मान चाहे न रखा लेकिन ह॒पारे
स्नेह का मान तो रपना ही पड़ेगा।'
हानन्दमयी--'भरे, तू भुके इतना क्या समझा रहा है? मेरे
मन की जो दशा है, उसे में हो जानती हूं । भेरे पति और पुत्र को यदि
भेरे आचरण से कष्ट हो, तो मुझे सुख कहाँ मिलेगा ? परन्तु तू यह नहीं
जानता कि तुके गोद में लेते के दिन से मैंने सतदे आचार-विचार व्याग
दिये | किसी छोटे ब्रालक को गोद में उठाने वर ही यहू समझ में आता
है कि पृथ्वी पर कोई प्राणी जाति लेकर उत्पन्न नहीं होता । मैंने जिस
दिन से इस बात की समझा, उसी दिन से मुझे यह निश्चय हो गया कि
यदि मैं किसी को ईसाई अथवा छोटी जाति का समझ कर घृणा करूंगी
तो ईदवर तुमे भी मेरी गोद से छीन लेंगे । तु मेरी गोदों को, मेरे धर
को सुशोभित रख, मैं ससार को सभी जातियों के हाथ का पामी पीछ़ी
रहूगी ।'
आज आनन्दमगी की बातें सुनकर विनय के मन में अचानक
किसी सन्देह का आमास उत्पन्न हुआ । उसने एक वार आनन्दमयी और
फिर गोछ के चेहरे की ओर देखा, परम्त फिर श्ञौन्न ही उच्त सन्देह को
उन समी तरकों सदित अपने मन से निकाल फेंका |
गोरा बोला-माँ, त् म्हारी यह युक्ति मेरी समझ में नहीं आई।
जो लोग आचार मानते हैं, जाति का विचार रखते हैं, शास्त्र को मान: ५,
कस
5
ग्डैं
User Reviews
No Reviews | Add Yours...