श्रीसत्पुरुषों के लक्षण | Shri Satpurushon Ke Lakshan

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Book Image : श्रीसत्पुरुषों के लक्षण  - Shri Satpurushon Ke Lakshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पु लल््ननन फट टला जैसी आवक किस्तको कहना, ' [ दचमप्ती रुप तसे करो रें झणी ए राइ-: [ ] आवकमाई तेने किये, जे पौर पराई जाणे रे। पर दु खे उपकार करे पण, मन अमिमान न आगे रे हमरा भार ६ जै सकर लोके वादे सुसाधुने, निन्‍्दा ने करे केनी रे । वाचा काय भन निश्चक राखे, घत घन जननी तेनी रे ॥1०॥२॥ पु समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, मरसली जेने मात रे। 1 जीम थकी अप्तत्य न बोढे, परधन नवि गद्दे द्वाथ रे ॥था ०॥३॥ [ है माया व्यापे यवि अगे, हृढ़ वैराग्य सेना मनमा रे । [ ! अरिहत नामसु रटना छागी,सकल तीरथ तेना तनमा रे ॥श्रा०)४॥ [ छोभी नहीं कपटी पण नहिं, काम क्रोध तित्रारे रे । ! भणे नरसैयों तेनु दरिसण, करता कुछ उजवारे रे ॥श्राणा५॥ । # भणे मणावे अवर को, शास्रतणा नित घोल | ( सुहृत में द्वव्य चापरे, दिले रहे सम तोल ॥ १॥ [ 1 आशझ एक अरिहत की, राखे मन में घार। ; 1 क्रिया आवश्यक आचरे, परदुख मजनदार ॥ २॥ [ 1 ते जन उत्तमता ल्‍हे, आदर्श बन पूजाय । | 1 अमर यश सहित आयमे, अविनासी पद पाय ॥ ३ ॥ ४ बल्चप३ ८ीकत 3 ८क 3८ लत 2215 टीचल३ ८क्‍0+9 ८0०१ ८-७००३ ८०३०३, गज




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