श्रीसत्पुरुषों के लक्षण | Shri Satpurushon Ke Lakshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पु लल््ननन फट टला
जैसी आवक किस्तको कहना, ' [
दचमप्ती रुप तसे करो रें झणी ए राइ-: [
] आवकमाई तेने किये, जे पौर पराई जाणे रे।
पर दु खे उपकार करे पण, मन अमिमान न आगे रे हमरा भार ६
जै सकर लोके वादे सुसाधुने, निन््दा ने करे केनी रे ।
वाचा काय भन निश्चक राखे, घत घन जननी तेनी रे ॥1०॥२॥ पु
समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, मरसली जेने मात रे।
1 जीम थकी अप्तत्य न बोढे, परधन नवि गद्दे द्वाथ रे ॥था ०॥३॥ [
है माया व्यापे यवि अगे, हृढ़ वैराग्य सेना मनमा रे । [
! अरिहत नामसु रटना छागी,सकल तीरथ तेना तनमा रे ॥श्रा०)४॥ [
छोभी नहीं कपटी पण नहिं, काम क्रोध तित्रारे रे ।
! भणे नरसैयों तेनु दरिसण, करता कुछ उजवारे रे ॥श्राणा५॥ ।
# भणे मणावे अवर को, शास्रतणा नित घोल | (
सुहृत में द्वव्य चापरे, दिले रहे सम तोल ॥ १॥ [
1 आशझ एक अरिहत की, राखे मन में घार। ;
1 क्रिया आवश्यक आचरे, परदुख मजनदार ॥ २॥ [
1 ते जन उत्तमता ल्हे, आदर्श बन पूजाय । |
1 अमर यश सहित आयमे, अविनासी पद पाय ॥ ३ ॥ ४
बल्चप३ ८ीकत 3 ८क 3८ लत 2215 टीचल३ ८क्0+9 ८0०१ ८-७००३ ८०३०३, गज
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