भगवान एकलिंग और हारीत | Bhagawan Ekaling Aur Harit

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Bhagawan Ekaling Aur Harit by गोस्वामी राघवानन्द - Goswami Raghavanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १३ ] पूर्वीय द्वार के बाहिर सीतर प्रकाश आने के लिये दीवारों में पत्थरों की जालियाँ लगी हुई हैं। इनके नीचे यमुना ओर सरस्वती की मूर्तियाँ हें । निज मन्दिर के चान्दी के किवाड़ों पर सुन्दर बेल बूँटे बने हुए हैं। किवाड़ों पर एक ओर स्वामी कार्तिकेय और दूसरी ओर गणपति की चमर हाथ में लिये हुए पिठ्भक्ति का एः ४5७ ९५० हें आदर्श सामने रखती हुई सुन्दर सूर्तियाँ अंकित हैं सन्दिर के बाहिर पश्चिम तथा दक्षिण द्वार की ओर कठघरे लगे हुए हैं, जिनके मीतर मुख्य मुख्य व्यक्ति ही प्रविष्ट हो सकते हैं। कठघरे के आगे पश्चिम की ओर सभामण्डप है, जिसमें बेठकर स्त्री पुरुष स्वतन्त्रता पूवक भगवान्‌ के दशन करते हैं । सण्डप के बीच में चान्दी का नन्दिकेश्वर बना हुआ है । मन्दिर के बाहिर भी पश्चिम की ओर सामने एक पापाण का तथा इसी के पीछे छतरी में एक पीतल का बड़ा नन्दिकेश्वर बना हुआ है । मन्दिर के दक्षिण द्वार के बाहिर सामने ताक सें बि० सं० १४४४ ( ३० सं० १४८८ ) चेत्र शुक्ला दशमी गुरुवार की महा- _शाणा रायमल के समय की १०० श्लोकों वाली एक प्रशरित लगी हुई है। + यह महाराण[ हम्मीर से लेकर रायमत्त तक के राजाओं के इतिहास तथा मन्दिर के पुरातन वृत्तान्त होने से' बड़े महत्व की है। पी भाबनगर इन्स्क्रिप्शन्स 2० १३१७-२३ 1 वीरविनोदु एछ ४६१७-२२




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