श्री ढाईद्वीप पूजनविधान | Shri Dhai Dwip Poojan Vidhan

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Shri Dhai Dwip Poojan Vidhan by कमलनयन - Kamalanayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री अढाई-द्वीप पूजन विधान । [ १५ न्स््ख्टर७ ५७७, २७७५७ ७७ ७५ ७०७७७ ५ औ ७ ५५७०५२ ७५३७७ ५ ७२२७७७४७ २७ २५७४ ७७ ७ औ ५७ ७ ५५ रस, ५ अथ वनचतष्टयास्थतर्चयालय एजा। अडिल्ल छन्द्‌ हु पांइक बन सोमनस तथा नंदन भनो, परो भूमि पर भद्रशाल चौथो गिनो ।. पोडश जिन चेत्याले तिनमें शुभ राज ही, व तिन आह्वानन करत दुरित दुख भाजही ॥३६॥ ३5 हीं पांइकवनस्थित पोडृश चेत्यालयस्थित जिनसमृह अन्रावतरावतर अन्न संबोषट्‌, तिप्ठ तिष्ठ 5: 50, अन्न मम सन्नि- ईहितो भव भव वषट्‌ सन्निधिकरणं । श्रीपांइकवन पूजन चेत्यालय विषे, अष्टोतर शत्त प्रतिमा जिन श्रुतमें लिख । पंच शतक धनुपोत्तर तन जिनको क्यो, तिनपद पूजन वसुव्रिधि मन हरषित भगो॥ ३७॥ 3 हीं पांइकवन पूवरोदिक चेत्यालयस्थित जिनेभ्पो अधे । श्रीपांइकवन दक्षिण जिनमेदिर सही, बसु शत प्रतिमा तामें शुरु गौतम कही | तिनके चरन जजों तन मन हरपायकै, जल फलादि ले वसुविधि अबे बनायके॥ ३८॥ ' ऊ#* हीं दक्षिगदिव पांडुकनस्थित जिनमंद्रि जिनेम्यो अबे।




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