पूर्व और पश्चिम की सन्त महिलाएं | Purv Aur Pashchim Ki Sant Mahilaen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
316
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)छू स्त्रियां की ग्रास्पात्मितत धश्म्परा श्ष्
धाधारामुक्त भद्ृत्त्य ऐेप रह यया है. तो सयों त इस छेंस्कार को पूर्षतमा समाप्त
ही कर दिया जाये पा प्राहगरकक्प ने सड़कियों के छिए टप्समत का तिपेष
किया है प्लौर बाद के स्मृतिकार्रों का भी गही दिवान है ।
होने को हो स्मृति पुराण के गुग में भौ शुद्ध हिखू टपस्विमियाँ हुईं
शेकित आमिर प्रात्रार्याधिपत्प में रम्हें क्मेद सम्मासिंत पद हीं दिगा सया।
दानप्रस्थी ब्यक्ति छोयाल लेपे समब प्पती पत्नौ को सा सेकर जा सकता भा
स्रौर परि-पस्लौ मिस कर तपाजर्मा कर सकते थे । बेकिस इसके उतदाइरण
गहुत ही कम मित्षते है। काशान्हर में मह विभान मौ समाप्य कर दिमा गया
श्रौर साचा्ों ते कह दिया कि सौह युग में स्जियों के लिए बागप्रस्थ प्लौर संन्पास
ग्रसम्भभ तथा निपित हैं | बौद्ध मिप्तुअमक्तुचियों के पिहारों में भ्रष्टाभार
के पसफ्ली पर हो यह बिषात और मौ प्रतुस्संश्स समझा लाने लगा।
ष्
सन् ६०० ईस्तौ ऐें सेरए १८०० ईस्शी तक के काल में महाषाम्गों भौर
पुराणों में प्रहिपादित प्रामिक मार्पताओ्ों का बोलगाला रहा । बेडों पुराणों
प्रौए स्मृत्तियोँ में प्रयुक्त संस्कृत भाषा का प्रदशन भीरे-पौरे कम होता गया भ्ौर
म्शारहबी प्रदाम्दी के प्रारम्भ दोते-होते ये सब्र प्रस्थ जनसाधार्य के स्रिए सुवम
सुबोप गई रहे। गैविक काल में स्विमों को लो सुगिषाएँ भौर किफ्रेशबिकार
प्राप्ठ थे दे सम समाप्त हो गय॑ 1 यह गही युग है जिसमें भक्ति मार्ग का
प्रादुर्भाण हुप्रा । स्त्रियों ने बहुत उत्साह सौर तिप्म से सावना का यह तया
मार्म भपनताया (एस शुत की शचभव प्रमी सन्त हिस्दू महिलाएँ किसी मे खिसी
मविव-सम्प्रराय कौ घदस्मा रहीं । धजी प्रा्ों में जत्ति-सम्पदाशें का शिड्ात हुप्ा
प्रौर सभी प्राक्कों में प्रगेक महिसाएँ सन्त बनझर प्र्िद्ध हुईं । द्रत, पूणा सजब
दर्शत घामिक प्रस्पों गा पत्श-पाठत झौर प्म्य भ्राष्यात्मिक इृत्य एस
मह्दिक्ता्ों के मित्य मियम बने इस युय की गई प्रमुख मह्दिसा सम्तों की प्रस्तुत
पुस्तक में बर्नों कौ ययी है ।
घासव दुछ शोगों कोइस बाए सै प्राश्चर्य हो हि जारत-जैसे शिक्षात देश में
जहाँ इतनी बड़ी संख्या में सन््त महिलाएँ घौर धपस्बिगियाँ हुए है वहाँ मिक्षुसियों
बी कोई मी सेस््मा गहीं बनी! ऐसी छेस्था मे बत पाने के पनेक कारस थे |
पहुछा को पं कि हमारा देश तब राष्ट्रीय हास भौर सामायिक उदस-पुपत्त शे
दौर से मुडर रहा बा जो फूट भौर मृक्तिए उमर पे उद्मृत भरपुविशमा डे
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