आत्मज्ञान - प्रवेशिका | Aatmagyan - Praveshika

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Aatmagyan - Praveshika by केशरविजय गणि- Kesharvijay Gani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निवेदन । न-लनन- यह छाटीसी पुध्त ' आत्महान ग्रवेशिद्य. पाठकोड़े भट ढष्व हमें प्रसप्तता होती है । इसझ दिश्य नामदीस प्रच्ट दे | पुम्तइमे २७ बाठ दै । प्रत्येष्ध पाठमे छुदा जुदा विषय दें! विप्यद्या प्रतिपाइन यंधपि शैनाहिसे हिया गण है तयाप्रि धममानेझा ढग इतता स॒दर है हि इरढ धमदा मलुष्य इससे लाभ ठठा सहता है। ' धात्मपदा. भौर *कात्म विद्यम ! मामके पाठ ते! प्रत्येक मनुष्यओोे श्रति दिन एफ बार भरा पढ़ जाने ादिए! इनसे मठुलजक हृद्यंते आत्मषछ्का राचार भौर था शद्धिक भाव जागत होते है 1 घर्मपरायण दातवीर श्रेट्िय श्रीठक्षमोयदेजी बेदके पोष झऔर पुँवरा अमरचदजीक पुत्र भीयुत पूनमचरदन, बसा मुरी ऊ स० १९८९ के रि सस्‍्वगशंस हो गया था । अभी ठमडी उप्र खाढ़े तीन ही इससे डसका जम स० १९७७ मिगसर गुद्ी १५ के दि। हुमा था। छल वियोगका आपात हृदयमे कितना जबर्दस्त छगता है इस बातदों जानते हैं चिदे देइ-प्रकोप्ते झमी इस तरइझ भ्राषांत साइना धण | ), मगर ेँच भात्मा ऐसे समय भी आत्म-विश्यृत नहीं होते ऐस पमप्रल भौ वे पापको न2 करने और पुण्यक्नोे दनेशटी शूति ही झरहे हैं। आाध्यात्मिच साहित्यक्ा प्रचार झपना, काना एक ऊँच दर्शक पुण्य-काय हू । दानवीर संठजी तथा उनके भुपत्र दँवर अमरघदजीने यह पुल भात्मार्यियोंक्ी मेटमे देनेड़े लिए जो सहायता दी है उसडे दिए आशा है हमोरे साथ थाढ भी छेठीडे इन होंगे । पुष्ण तो ठाई हावदीया 1 खेद दे कि, दम स्वर्गीय वापुद्ध फोटो, प्राप्त न इनेएे, पुस्‍्तडमे मे दे से “मकाशक ।




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