सोया नहीं कबीर | Soya Nahin Kabeer

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Soya Nahin Kabeer by अख्तर नज़्मी - Akhtar Najmi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नज़्मी” की मे लालसा, ऐसा दिन भी आय। बासंती का रूप भी, बासंती हो जाय।। झूठी सबकी दोस्ती, झूठा सबका प्यार। नज्मी' जैसा खोज लो, खोज सको तो यार।। नदिया मैली हो गई, घोये सबके पाप। लज्जित फिर ऐसी हुई, उड़ गई बनके भाष।। सींचा-तानी हो चुकी, दिशा-दिशा हर ओर। अब मत खींचो सांस की, डोरी है कमजोर।1 अपना-अपना रंग है, अपना-अपना राग। कोई पाले मोरनी, कोई पाले नागा। मिलजुल कर तू भी मना, सबके संग त्यौहार। पागल अपने आप से, लडना है बेकार।। सोया नहीं कबीर / 25




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