अवस्था | Avastha

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Avastha by यू॰ आर॰ अनन्तमूर्ति - U. R. Anantamurti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अवस्था : 25 कोई किताव पढ़ती रहती। सामान्यत. लडक्षियाँ आपस में एकवचन में सम्वोधन करती है। उससे भी एकवचन में वातें करती हैं, पर वह नाजुकी से उन्हें बहुवचन में सम्बोधित करके अपना फ़ासला बनाये रपतो। क्ृष्णप्पा ने कभी उससे बात नही की, फिर भी उसे बरावरी की निगाह से ही देखता या । एक दिन शाम के समय क्ृप्णप्पा अकेला ही कॉलेज की ओर घूमने निकल गया था । फुटवाल की एक टीम खेल खत्म करके घर की ओर लोट रही थी । इस टीम का कैप्टन एक मुस्टडा लड़का था। वह अपनी टोली बे पीठ के पीछे खडा क रके दीवार पर कुछ लिख रहा था। सभी को हंसते देख कृष्णपपा का ध्यान उस ओर गया। मुस्टडे का नाम था रामू । कॉलेज में आवारा के नाम से प्रसिद्ध था। कृष्णप्पा के वरावर की ही उम्र थी । बाप शहर की एक बड़ी राइस मिल का मालिक था। क्ृष्णप्पा को जो इज्जत मिलती थी, उससे वह जलता था। क्ृष्णप्पा ऐसे गुंडे-आवारा लड़को से काफ़ी फासला रखता था। वह उनकी ओर कभी आँख उठादर भी नही देखता था। कॉलेज में यो व्यवहार करता मानो उसकी बराबरी का वहाँ कोई है ही नही । ऐसे लडको की समझ में नही आता! था कि किसी के साथ स्पर्धा न करने वाले कृष्णप्पा के साथ कंसे पेश आयें ! रामू द्वारा लिखे वडे-वढे अक्षरों को पढकर हष्णप्पा का रोआँ-रोगओँ जल उठा | 'गौरी छिनाल की बेटी है ।” “ऐ गोरी, तेरे बोसे का क्या दाम है ?” ऐसे वाक्यों पर रस लेते रामू के पास जाकर क्ृष्णप्पा ने अपनो गरभीर भर्राई हुई आवाज़ में कहा, “जो लिखा है, उसे मिटा दो ।” पल-भर रामू को सूझा नही कि क्या जवाब दे ! “तुम्हें क्या पता कि किसने लिखा है?” थोड़ी देर वाद उसने दबी आवाज में कहा । फिर कुत्सित तरीके से हेसकर अपने साथियों की तरफ देखा ताकि उन्हें पता चल जाये कि उसने क॑सो समझदारी की वात कही है । “तुम्हें त्रिसते हुए मैंने देखा है)” क्ृष्णप्पा ने अपना गुस्सा दवाकर सजीदगी से कहा । रामू पहलवान था ! बड़ी-वडी मूंछे रखो हुई थी । शायद मन-ही-मन कृष्णप्पा का जिगरी बनने की इच्छा रहो होगी। ठोस व्यवित से लड़ पड़ते




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