हिन्दी साहित्य के कुछ नारी पात्र | Hindi Sahity Ke Kuchh Naripatra

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Hindi Sahity Ke Kuchh Naripatra by माधुरी दुबे - Madhuri Dube

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रलावलौ ७ * तुलसी चरित भौर गोसाई घरित में, लोक-साहित्य में प्रचलित उन प्रसिद्ध पंक्तियों को लिखा है, जी प्रेम विभोर तुलसी से रत्ना ने उनके ससुराल तक परीछे-पीछे पहुँच जाने पर कही थी। कौन जाने इन पंक्तियों में कितना ऐतिहासिक सत्य है, पर लोक-साहित्य में तुलसी, राम झौर सीता की प्रियता का जितना विस्तार है उतना ही रत्ता भौर तुलसी के भ्रटूट प्रेम का भौर तुलसी के प्रति कही गई रत्ना फी इस उक्ति का भी 'ज्ञाज न श्रावत आपको दौरे भ्रायहु साथ! तुलसी से बिना कहे रत्नावली मातृग्ृह चली जाती हैँ। तव एकाकी तुलसी का मन भी घुमड-धुमड़ कर बरसने वाले बादलों की तरह रत्ना के विरह में उमड़ने लगता है। एकाकी मन की पोड़ा की इसी पनुभूति का सार्थक पर्यवसान तो सीता विरह से उत्पन्न राम की पीड़ा में हुमा है । घन घमंड नम गरजत घोरा । प्रियाहीन डरपत मन मोरा 11 मही पीड़ा है जो राम की विरह उक्तियों के मर्म मे समायी हुई है । कहेउ राम वियोग तव सीता। मो कहुँ सकल भयो विपरीता ।। नवतरु किसलय मनहुँ कृसात्‌ । कालनिसा सम निसि ससि भानू ॥| कुवलय विषिन कुतवन सरिसा । बारिद तपत तेल जनु बरिसा ॥ तुलसी को भी रत्ना के विरह में सब कुछ विपरीत लगा होगा | एक क्षण भी रत्नावली का विरह नहीं सह सकने वाले तुलसी की सत्ता को जब रत्नावली भी नकार के मातृगृह चली गईं तो रत्ना के प्रति वे ऋ्रोधित नही हुए । प्रेम की प्रचण्डता ने, भावनाओों के भावेग ने उन्हे भौर भी उत्तेजित कर दिया। वे रुके नही। भ्रदम्य प्रेम भौर स्फूर्ति के प्रावेश से व्याकुल हो वर्षाधिक्य से उमड़ती-घुमड़तो नदी ! न नावन प्रन्‍्य कोई सहारा : फिर भी वे पार गये । अट्टूट शक्ति के सामने प्रकृति की प्रस॑स्म बाघाएँ साधन बन गईं । लेकिन जब पहुँचे तो क्या रत्ना ने




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