समानधर्मा | Samanadharma

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Samanadharma by हितेश व्यास - Hitesh Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वंसाखियाँ और पांव यादों के किसी मोड़ पर मैं अपने पांव छोड़ आया हूं जहाँ तुम्हारी बैसाखियों ने बन कर के पांव दिया था ठांव आज फिर से गुंजरना होगा अतीत के रस्ते पर पहुंचना होगा यादों के उस मोड़ पर जहाँ में अपने पांव छोड़ झाया हूं कितनी मोहक होती है बैसाखियाँ कि आदमी छोड़ देता है अपने पांव पर वैसाखी बैसाखी है और पांव पांव चलना छलना है चलने से कब मिली है सबको मंजिल पर यहाँ कोन रुकता है कुछ भी हो श्रादमी चलेगा कभी पांव और कभी वैश्लाखियों के नाम पर खुद को छलेगा पर आदमी चलेगा तुमने मुझे वेसाखियाँ दीं धीरे - धीरे मैं अपने पांव होने के श्रहसास को भूलने लगा पमानेधर्मा/13




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