सत्याग्रहगीता | Satyagrahageeta

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Book Image : सत्याग्रहगीता  - Satyagrahageeta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ श्री! ॥ सत्याग्रहगीता प्रथमोष्ध्यायः गम्मीरों विषय: छायं श्रेष्ठ: स॒त्याग्रदात्मकः । क्ृत्स्ने जगति विख्यात) के में लघुतमा मतिः ॥ १॥ (१) समस्त संसारम दिख्याद सत्याग्रहामक यह अछ और गम्भीर विषय कहाँ! और मेरी बहुत तुच्छ चुद्धि कह ! झब्द्गीरबहीनाई युद्धस्पैतस्प गोसम्‌ व्याख्यातुम्समर्थास्मि गुणर्दिज्यर्विभूषितम्‌ ॥ २॥। (२) घद्दमंदारके गुस्वसे हीन में दिव्य गु्ेसि विभूषित इस थुदके गारवका चर्णन करनेमे अशक्त हूं 1 तवापि देशमक्त्याईं जातास्मि विवशीद्धता । अव एवास्मि तद्भाठम्रुथ्ता मन्दवीरपि ॥ ३॥ + _ (३)ठों भी अपने देशके प्रेमसे विवश होकर मन्दद॒द्धिवाडी दोकर भी टसे गनेझे उद्त हो गई हूँ। दुद्विता श्टरस्थाई पण्डितस्थ क्षमामिरा । अध्षमापि कवेमार्गे ओवव्या वस्तुगीखात्‌ ॥ ४ !॥ (४) मेरा नाम क्षमा है-शंझर पण्डितद्ी में छट्की हूं। करके मार्मम अक्षमा अयांद असमर्थ में हैं। ठोमी विपयके गौरवके कारण मेरा कइना सुनना चाहिए ।




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