संस्कृतकविपञ्चक | Sanskrit Kavipanchak

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Sanskrit Kavipanchak by गंगाप्रसाद अग्निहोत्री - Gangaprasad Agnihotri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हि २. कक. किए, ज्वह यशकों जिन थोथे आक्षिपोसे करुंकित किया था, उन्हें उसने किस प्रमाणपूर्ण चतुराईसे दूर कर दिया, आदि बातोको हमोर रसभावज्ञ पाठकंगण यदि अपने विचारक्षेत्रमे छेगे तो वह लोग अपन अधिक ज्ञानके कारण, उक्त शास्ीजीकी उपेक्षा कदा- पि नही करेंगे; प्रत्युत उनके उपकारका स्मरण कर सहसा उनके चिरक्ृ- तज्ञ होंगे। शासत्रीजीके विचार ओर भावोका हमारे पाठकोको यथार्थ ज्ञान हो सके । इसी आभिमायसे हमने उनके छेखोमें कुछ न्यूनाधिक््य नहीं किया है। यदि कही कुछ किया ही है ती एक दो स्थान पर टिप्पणीके स्वरूपमे ही किया है, मुख्य लेखमें अणुमात्र भी परिवर्तन हमने नहीं किया है । इस ग्रंथके अंगरेनी, संस्कृत तथा हिंदी जाननेवाले विद्चकचूडामाणि गण यदि हमारे इस ग्रंथकों केवल संस्कृतके यत्परानास्ति पंडित प्रकां- डॉके समाजमें प्रविष्ट करनेका प्रयत्न करेगे ती हमें भरोसा है कि वह छोगभी इस प्रकारके उत्तमोत्तम निबंध लिखनेकेलिये उत्साहित होगे। इस ग्रंथके प्रकाशककी इच्छा थी कि इस ग्रंथके साथ शास्रीजीकी संक्षिप्त जीवनी भी छाप दी जाय; पर हमारा बिचार शाखीजीका जीवनचारित स्वतंत्र रूपसे लछिखनेका होनेके कारण हमने वैसा नहीं किया ।संस्क्ृत कविपं- चकको पठ यदि हमारे जिज्ञासामिय पाठकगण शाखीजीके नीवनचरितकेलिये ५ होंगे ती हम उनकी मनस्नृष्टिकेलिये अवश्यमेव प्रयत्न करेगे । हम नागरीके प्रसिद्ध सुलेखक सरस्वती” के सम्पादक श्रीयुत <- द्विविदीको अनेकानेक साधुवाद देते है कि जितने ९ इस अनुवादकी बारबार चर्चा की, जिसे पठ जयपुरके तैपी “समाछोवक ” के स्वामी मिस्टर जैन निज व्यूयसे प्रकाशित करनेकी इच्छा हमपर प्रकाशित




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