मुण्डकोपनिषत् | Mundkoupnishat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
239
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अस्तायता डे
'साय्वीच ती तिल्वस्वरूप सागपाप्या श्रादिदान्याला शरण जातो आपि त्या पायूद
झ्ानापदेश कहने घेऊन पुरुशय साध्य करितो आपलें स्वरूप समजण्यास्राी गुरुठा
अब दरण गेलें पहने कारण मित्र टुवि एडच सत्य मिअ्रपकारानें रागतात,
जौवाला अनेकश्रकारने सशय भष्ठात द अध्म स्वत च्या बुद्धीण भेद असल्यामुझे
सम्रदत नाहा गाप्ताठी शुए हघा, फारण, सब अटवर्णायें नियारण फरधारा हा श्रोजिय
य प्रद्मनिष्ठ गुद वेदाचा समखय करितो, सरायादें विरसन कतत्ता आंगि अवेय दह्म
* तें दूच आदेस ? असा महावास्याचा उपदेश अधिकारी शिप्यास करन महाज्ञान
करून देतो यास्ार्टी झुझ्ूछा शरण जापें अददग खादै
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विश्वन्या भयवा दुस या सुडकाश्या पद्िल्या सढ़ात सशच्या उत्पर्तायें दिलार-
धूषद वर्णन केडे भ्राद्टि एका प्रदीक्त अमरापामून अप्रित्वहुपी अनत स्फुर्थिय उत्पत
होतात, त्याप्रमाणें मायासवलित ब्रद्मादामून अनव द्ञानरुपी जीव कट होहात
ब्रद्म हैँ छत स्वयप्रदाध, एकरस, ग्राणमन शल्य झुद आएगे स्वमेष्ठ
सयपैधांक्ध धेष्ठ व पिर्षण आदे हो अरबिय, अन्विंचगाय आणि अपटित घटना
करणारी माया श्राणशय अप्मापाून ग्राण मत छूयापायूत सन, एकरसापासून
अनेक इद्रियाययय आि दिव्य स्वयश्रद्याश्ष अद्यापातूव पथ महाभूतादि जठ छोि
निर्माण करित इंच मायेचे अपटितफटनापद्रद होय खारांत, मायेवी सयति
ओेत्यामुल्ठ प्रद्मारा दिरष्यग्रभे विराट , चराचर श्त्यादि रंपूछ सुपम रुपें ध्यावी छायूत
जआमि सोम, पथ्वा पुसात्र आगे छा ही_पचाप्ति स्वरुप धारण कराबों लागतात;
शीत, बैद, पदोक्त कर्म, कर्मायभूत देव है विज्ञानस्वरुपें ) जागि जड़ प्रष्य इल्यादि
स्व॒रुपें घारण करादी झगतात तथापि या सर्वोचा क्षात्मा एकच ब्रक्म आदे सर्द
विश, विश्वगतकर्थ तद्भव तपश््यों ज्ञान आधि फल ही घर दिसतात तपों नसून
अद्यहप भ्देव हें ज्पास युर्पदेश्ानें समजतें तो अज्ञान उत्पन्न करणाया मायेना
नाश करितों व सवर धद्यन!मद वस्तु भादे असा निश्रय कझन देती
इसत्या मुश्काच्या इसन्या खडात मृहणत या डपनिपदाच्या चौम्ण खडत
साधव अकरणाया विचार वैल्ा आदे प्रशरत घ्वयश्रवाश्ञ भागि देहयया्चें साक्षी
( स्पूल, छिंय भणि कारण अस तीन दह जीवाछा स्रसताते छथूछ देंद म्इणवे
आपडऊें दें रथ झरार, लिंगदेद हा वासनामय जाईे आंणि कारंगदेह द्वा अज्ञनमय
आाद्दे भयों है तीन देद जोवाता असतात ) बहा, देद्दाच्या जाशत स्वप्न सपुप्ति,
ख्था तीन अवर॒पांत अद्म-जीयामा-सदैव जारत असतें, झा विषय आइ यादें ह्ञानरुप
आापस्यास दोणत्या सद इटरियविहानांटूत थे्ठ ध्यणि विलक्षण आई ते कार्य-
कारण्शय आदे या स्वरुप थवण युस्सुखानें होतें दें सबभेष्ठ सर्वजगढुय
स्वरूप छूच आदेस असा उपदेश शौगुर करितों व अर्तेंदी खगतो की अवित्य
अद्ायें हु मनने केल्याशिवाय सशयाचा नाश व्यादयाचा नाई। आसाओं खचिय-
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