षट्खंडागम भाग - 5 | Shatkhandagam Bhag - 5

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Shatkhandagam Bhag - 5  by हीरालाल जैन - Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-परिचय (११) सम्यक्त्वोषपत्तिम २०४ से २२० तक, एवं गद्मागतिंम १२० से ३६८ तक सूत्रसंख्या पाई जाती है। ऐसी अवस्था हमारे सन्मुख दो प्रकार उपस्थित हुए कि या तो प्रथमस लेकर नौवीं तक सभी चूलिकाओमें सूत्रक्रमसर्या एकसी चादू रखी जावे, या फिर सबकी अरूग अलग | यह तो बहुत विसंगत बात होती कि प्रतियोंके अनुसार प्रथम दो चूलिकाओंका सूत्र- क्रम प्रथक्‌ प्रथक्‌ रखकर शेषका एक ही रखा जाय, क्योंकि ऐसा करनेका कोई कारण हमारी समझमें नहीं आया। प्रत्येक चूलिकाका विषय अलग अलग है और अपनी अपनी एक विशेषता रखता है । सूत्रकारने और तदनुसार टीकाकारने भी प्रत्येक चूलिकाकी उत्थानिका अलग अछाग बांधी है। अतएव हमें यही उचित जंचा कि ग्रल्येक चूलिकाका सूत्रक्रम अपना अपना स्वतंत्र रखा जाय | हस्तछिखित ग्रतियो और प्रस्तुत संस्करणमें सूत्रसंख्याओंमें जो वैषम्य है वह हस्त प्रतियोमें संख्याएं देनेमें त्रुट्योके कारण उत्पन्न हुआ है | वहां कुछ सूत्रोंपर कोई सेख्या ही नहीं है, पर विपयकी संगति और टीकाको देखते हुए वे स्पष्टतः सूत्र सिद्ध होते है| कहीं कहीं एक ही संख्या दो बार लिखी गई है | इन सब त्रुठियोके निराकरणके पश्चात्‌ जो व्यवस्था उत्पन्न हुईं वहीं प्रस्तुत संस्करणमें पाठकांकों दृश्टिगोचर होगी। यदि इसमें कोई दोष या अनधिकार चेष्टा दिखाई दे तो पाठक कृपया हमें सुचित करें। विषय-परिचय प्रस्तुत ग्रेथ पट्खंडागमके प्रथम खंड जीवस्थानका अन्तिम भाग है जिसे धवलाकारने चूलिका कहा है | प्रूथमे कहे हुए अनुयोगोके कुछ विपम स्थलोका जहां विशेष विवरण किया जाय उसे चूलिका कहते है! | यहां चूलिकाके नौ अवान्तर विभाग किये गये हैं जिनका परिचय इस प्रकार है--- / १ प्रकृतिसमुत्कीतेन चूलिका क्षेत्र, का और अन्तर प्ररूपणाओंमें जो जीवके क्षेत्र व काल्सम्बन्धी नाना परिवर्तन बतढाये गये है वे विशेष कर्मबन्धके द्वारा ही उत्पन्न हो सकते है। वे कर्मबन्ध कौनसे है,- उन्हींका व्यवस्थित और प्रूण निर्देश इस चूलिकामे किया गया है। यहां ज्ञानावरण, दशनावरण, १ सम्मत्तेतत अद्ुछु अणियोगदारिसु चूलियां किमट्रमांगदा ! पुश्युत्ताणमहण्णस्रणिओगद्ाराण विसमपंएसी- विवरणइसाांगदा | पु ६, पू २. चूलिया णाम कि? एक्काससअणिओगदारेस सुइदत्थरंस विसेसियूण परूवणा चूलिया | खुद्बध, अन्तिम महादडक. उक्ताउक्तदुरुक्ताचिन्तन चूलिका | गो. क. ३९८ टीका. * कर]




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