नागरसर्वस्व | Naagarasarvasv

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Naagarasarvasv by भगीरथ स्वामी - Bhagirath Swami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२० नागर -सर्वस्व । गुणाः स्‌ रुग्गोरवकान्तिमत्ता: स्नेग्ध्यं महत्वं समता5च्छुता च। दोषास्तथा बिन्दुकलझ्टरेखा- सत्रासोमल: काकपद लघ॒त्वप्त ॥ ३॥ हीरेके इतने गुण हैँ--वह खूब गोल हो, सुन्दर हो, भारी हो, साफ मलकता हो, खूब चिकना हो, साथ ही जो जितने बड़े होंगे उनका उतना अधिक मूल्य होगा। दोष इतने हें-- यदि उनमें विन्दु हों अर्थात्‌ ज़ल्में जेसे बुलबुले पड़ते हैं उसी प्रकार छोंटका चह, कलडुः अर्थात्‌ जरा स्याही ओर मलापन लिये हुए रंग हो, रेखा हो, कटा या टुटा हो, गड्ढा हो, कोबेका पाँव जैसा चिह्न हो ओर हलका हो तो उसे दूषित समभना चाहिये। तीचणाश्रिधारत्वसविस्तरत्व॑ गुणो तु वजूस्य वदन्ति तज्ज्ञाः । ९ रे श्‌ क्त्युद्धवाना मद , सूच्मभद स्‌ कृत्त श्‌ क़त्वममी गुणाश्व ॥ ४॥ रत्र परीक्षक अथवा जोद्दरी लोग हीरेके दो गुण और कहते हैं-- उनमें पक यह कि तेज हो ओर तलवारकीसी धार हो तथा चौड़ा हो । इसी तरह सीपके मोतीके गुण




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