महाभारत अनुशासनपर्व | Mhabharat (anushasnparv-7) Ank 103
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
498
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६०२ महासारत। [१ आनुशासनिकपर्
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इक 9 99299 98 १2859 766%995505886620876652 87 5 :5९20066526००१
1 तानि सवाणि पनसा विनिश्चित्य तपोधन। ॥ ११ ॥ ॥
1 अमावास्पां भहाप्राज्ञो विप्रानानाय्य पूजितान | £
० दक्षिणावर्तिका। सवा वृसी! खयमथाकरोत् ॥ ११॥ 1
। स्त विप्रांस्ततों भोज्ये युगपत्सछुपानयत् । १
| कऋ्ृते च लवर्ण भोज्यं दयामाकान्न ददौ प्रद। ॥ १३॥ ९
दक्षिणाग्रास्ततो दमा विध्रेषु निवेशिता) । |
पादयोश्षै विप्राणां ये त्वन्नसुपसुझते. ॥ १४॥ ई
। कुत्वा च दक्षिणागन्वे दर्भान््स प्रयता शुवि। । |
1 प्रददो श्रीमतः पिण्डान्नामगोजसुदाहरन ॥ १५ ॥ ४
१ तत्कूत्या स सुनिश्रेष्ठो धमेसंकरमात्मन। ।
१ पश्चात्तापेन महता तप्यप्तानोउस्थजिन्तयत् ॥१६ ॥ 1
5$ अकूत सुनिभिः पूष कि मयेदमलुष्ठितम । |
$ कथ् तु शापेन न मां दहेयुब्नाह्मणा इति. ॥ १७॥ £
ततः संचिन्तयामास चंशकतारसात्मन! । ९
' ध्यातमात्रस्तथा चाजिराजगास तपोधन। ॥ १८ ॥ ।
| थी, गद्मप्राइ तपोधन नि्िनि मनही | तथा भात्र उच्चारण करके श्रीमानके |
| सन सका निभ्रय करके अभ्ावसा | हद्देश्यसे पिण्ड प्रदान किया। मुनिश्रष्ठ !
विधि पूजित ज्ाक्षणोंकों लाक़े स्वय॑ | निम्मिने धर्मेधड्र करके अथीत वेद 1
1 प्रदरधिणावत्तित आसनोंक्ों स्थापित पितरोक उदृश्यसे पिण्डदान थम दीख ॥
६ किया । (९-१२) पछता है, इसलोकम पुत्रके निभित्त ॥
1 अनन्तर उन्होंने सात बरह्नणोंको पिण्डदान स्ेच्छानुतार कल्पित हुआ £
! एकबारही मोजन करनेके हिये बेठाया | है, ऐसा समझके अत्यन्त पश्माचापसे
और बिना लपणक़े सांबां अन्न खाने परितापित होफे चिन्ता करने ॥
॥ दिया। ऐप वो पद ब्राक्षण अक्ष | हगे। (१३-१६) 1]
1 भोजन कर रहे थे, उनके दोनों चरणों उन्होंने सोचा, कि पहले प्रुनियोने ?
हे समीप आपसनके धीच- अग्रमाग्मे | बजिसे नहीं किया, मैंने क्रिस्त निर्मित 1
9 (दिनों ओर दाम रखी गई। उन्होंने | उसका अजुष्ठान किया, ज्ाक्षण होग 1
8 सावधान और पवित्र होकर दाओोंकी | शापक्े रा मुझ्षे क्यों नहीं जलाते हैं? ?
£ अग्रभाग्मे दिनो ओर करके नाम | अन्तर उसने अपने वंशकत्तीका ध्यान
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