पद्मपुराण भाषा | Padmapuran Bhasha

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Padmapuran Bhasha  by महेशदत्त शर्मा - Mahesh Datt Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'क :रर रात सएराण मापा सूहिखण्ड म० : ९: . के दारीर के होने से अतिमनोहुर व अशुभ हरनेवाठा, कमठका! जल आपकोगों को पात्र. करे १ महामतिमान्‌ ोमहपैप्रा थी : एकान्त हें बेठेंहुये . उधशयानाम ब्यासज़ीके शिष्य सूतसे बोले २' कि हैं ताल ! जो घम्म हमले तुमने सुनेहें ऋषियेफि आश्रमोपर जाय एकार्शा विस पूछतेहुये श्रषियों से विस्तारपूच्वेक कही ३ है पुत्र! हमने सब पुराण सुनियों से 'विस्तारसहित कहतेहुय श्रीवेदब्यासजी से पाये हैं ४ जो ,कही कि व्यातजी से तुमने पुराण कहां सुने तो प्रयागजी से जब घट्कुलों सें उत्तम ब्राह्मणों ने. श्रीन्‍्यासभगवान्‌ से पूछा था तब धर्म सुनने व करनेकी इच्छा कियेहुये उन शुनियों से। मगवान्‌ व्यासजी ने कहाथा ५ तब उन सुनियों ने भगवानव्यास से! पूछा कि कोई और पु्यदायक स्थान हमलोगों को सदा के छिये| बताइये जहां हुम पुराणोंको सुनाकरें यह सुन श्रीनारायणरूपी प्या; सजीने अपना सुद्शननाम चक्क चठाया ६ य कहा कि इस हा उपमारदित सुन्दर चलनेवाओे चक्रके पीछे २ तुमलोग जाद़ो ऊपरर यह जायगा नीचे तु्छोग जावोगे पर इसका मार्ग तुम्हें दिखाई देतारहेगा ७ इससे जाने जहां इस घम्मंचककी पहिया टूटजाने से यह गिरपड़े उस देदको पुण्य समझना ८ ऐसाकहव्यासभगवान तो रा अन्तर्दानहोगये व बहु चक्र जाय गडाजी के वगोमतीजी कि गए स्थान वैमिषारण्य कहाताहै.चहदी सब कुषिलोग सहसों वर्षो के झकरने व कथा सुननेकेलिये जाबेठे ९ इससे हे पुत्र ! वहां हाय जो जो संझाय धर्म्प के विषय में वे छोग करें उनका नियारण करतेट्रये उत्तमधस्म उनसे कहना १० यह सुन परमज्ञानी उमा जी वहां जाय उनछोगों के समीप हाथजोड़ नमस्कार कर येठे 33 ः अपने नमंस्कारसे उन ऋषियोंको तम्तुष्टकिया कि जिलसे वे छोग श्ह्त प्रसनहुये व सर्व अपने समासदीलहित १९ उनके निकट [जाय बड़ामारी पूजन सत्कारफर ऋषिखोग बोले कि हे सूतजी ! तुम किस देशसे आये ३३' अपने यहां आनेका कारण बताइय तुमता से मक्रादित दोतेहठो जैसे देवताठोग शोमित होते ह इतना सुन 'सुतकें पुन्न-उमश्रवा जिनका सोतिमी नामहे.बोक कि व्यासजा ्




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