रघुवंश भाषा | Raghuvansh Bhasha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
67.98 MB
कुल पष्ठ :
243
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प् ... रघुबंधमाषा
निरखि तासु पाचन बदन सयुन सुखद अजुमानि |
सफल मनेारथ जाचकदि कहो यागिवर बानि ॥
''जिय जानडु नृपकाज सब ह्व हैं सिद्ध तुम्हार ।
नाम लेत पहुँची लखड्ड यदद मड्लझागार ॥
कन्द मूल फल खाय अब रहि याके नित साथ ।
विद्या सम अभ्यास करि यहिं मनाउ नरनाथ ॥
या बैठत बैठे घरनि चलत चलो संग लागि ।
खड़े ठाढ़ रहि, जल पियत पियडु नोर अनजुराणि ॥
प्रात समय बन खोर लीं नित याके संग जाहि ।
मिले सक्ति सन नित बघू साँक समय मग माँहि ॥
करि सेवा यहि तोषि नप लडिहै। सुत बरदान ।
नस बिघ्च तब पितन मह दोइय भूप प्रधान ॥
चतुर शिष्य ज्ञानत सकल देश काल को नोति |
खिर घरि युरूअज्ञा लई रानी सहित सप्रोति ॥
अवधघनपह़िं बिधितनय मुनि समुसावत यहि भाँति । ही
सेवन को आज्ञा दई गई कछुक जंब राति ॥ कि
रहो यद्पि तप सिद्धि सन सब समरथ सुनिराय । '
तऊँ जानि व्रत एक कुटी भरूपदि दोन्द बताय ॥
सखुनि ऋषीश के बेन पणुकुटी मद जाइ नप ।
कोन्ड दभ पर सेन पतिबरता रानी सहित ॥
मभण प्रात नरनाह गुरू शिष्यन कर पाठ खुनि ।
उठे समेत उछाइ दिवस काज निज्ञ हिये युनि ॥
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