रघुवंश भाषा | Raghuvansh Bhasha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प् ... रघुबंधमाषा निरखि तासु पाचन बदन सयुन सुखद अजुमानि | सफल मनेारथ जाचकदि कहो यागिवर बानि ॥ ''जिय जानडु नृपकाज सब ह्व हैं सिद्ध तुम्हार । नाम लेत पहुँची लखड्ड यदद मड्लझागार ॥ कन्द मूल फल खाय अब रहि याके नित साथ । विद्या सम अभ्यास करि यहिं मनाउ नरनाथ ॥ या बैठत बैठे घरनि चलत चलो संग लागि । खड़े ठाढ़ रहि, जल पियत पियडु नोर अनजुराणि ॥ प्रात समय बन खोर लीं नित याके संग जाहि । मिले सक्ति सन नित बघू साँक समय मग माँहि ॥ करि सेवा यहि तोषि नप लडिहै। सुत बरदान । नस बिघ्च तब पितन मह दोइय भूप प्रधान ॥ चतुर शिष्य ज्ञानत सकल देश काल को नोति | खिर घरि युरूअज्ञा लई रानी सहित सप्रोति ॥ अवधघनपह़िं बिधितनय मुनि समुसावत यहि भाँति । ही सेवन को आज्ञा दई गई कछुक जंब राति ॥ कि रहो यद्पि तप सिद्धि सन सब समरथ सुनिराय । ' तऊँ जानि व्रत एक कुटी भरूपदि दोन्द बताय ॥ सखुनि ऋषीश के बेन पणुकुटी मद जाइ नप । कोन्ड दभ पर सेन पतिबरता रानी सहित ॥ मभण प्रात नरनाह गुरू शिष्यन कर पाठ खुनि । उठे समेत उछाइ दिवस काज निज्ञ हिये युनि ॥




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