वोल्गा के दर्पण में गंगा के चित्र | Volga Ke Darpan Mein Ganga Ke Chitr

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : वोल्गा के दर्पण में गंगा के चित्र  - Volga Ke Darpan Mein Ganga Ke Chitr

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about साबिर सिद्दीक़ी - Sabir Siddiqui

Add Infomation AboutSabir Siddiqui

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
था मौन अब ब्राह्मण फिर घर को जा रहा था मानो भरी हुई थी दुसमय खुशी-सी मन में मानो वह देखता हो अब भी शकुन्तला की आँखों से बहते आँसू । [31 गम्भीर-सा, दुखी-रा चिन्ता से ग्रस्त बूढ़ा जंगल में घूमता था रह-रहके आ रही थी बूढें को याद विपदा रानी शवुन्तला की इक वार फिर अचानक सीमा पे युद्ध भड़का पूरब पे राज करने की कामना लिये अब पश्चिम दिशा से उदूठा था बेरहम लड़ाकू बेताब जंगबाज़ो के झुण्ड साथ लेकर थी अपनी साज्िशों मे उसने सफलता पायी डूबा हुआ था ग़म मे फिर आज मानो भारत रानी शकुन्तला औ' विक्रम के वास्ते अब बुढ़ा दुआएँ करता दिन-रात ईश्वर से बेकार थी दुआएं, अब युद्ध बाढ़ बनकर पहुँचा था उस जगह पर था जिस जगह का वासी वह बूढ़ा ब्राह्मण भी चारो तरफ़ ही मानो इक लूठ-सी मची थी होकर हताश बूढ़ा रहने लगा था जाकर अब दूर पवंतों मे बैज्ञार हो चुका था मानव की शक्ल से भी दुख से था भारी सीना थी मन में ब्राह्मण के अब मौत की तमन्ना पूरी न हो सकी थी बूढे की कामना यह योल्गा के दर्पण में गंगा के चित्र / 25




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now