समाज सुधारक | Samaj Sudharak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
168
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री नारायण स्वामी - Shree Narayan Swami
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३ )
को कहते है कि राधिका जी के कुन्दल नहीं है तू ही अपनी तरफ से
बनवादे । किसी को कहते हैँ आल एकादशी है, भगवान को फलादवार के
लिये सेर भर कल्ताकन्द ही दिलवादे। कहने का अभिप्राय वह है कि इस
प्रकार की बहुत सी चापलूसी की वातें करके संघार को धोखा दे रहे हैं और
अपना स्वार्थ सिद्ध कर रदे है। फिर इन देवालयों तथा मन्दिरों से किसी
को लाभ होता है ठो भी वात नहीं है, हां अलवत्ता इस प्रकार के मन्दिरों
से पुजारियों का काम श्रर्थात् ईश्वर और धमम के नाम पर धोखा देकर
श्रपना साथ सिद्ध करके संसारिक नाना प्रकार के भोग भोगना तथा द्रव्यो-
पालन करके अनेकों अ्नर में प्रतृत्त होना तथा सुलफा; गांजा, तथां भंग
श्रादि का पीना तथा आलत्य और प्रमाद मं पढ़े रहने के सिवाय दूसरी
उत्तम बातें कोई भी देखी नहीं जा रही हैं। ये लोग इन मन्दिरों में वेकोर
पड़े हुए रात दिन अपनी स्क्रोम में ये ही बातें सोचा करते हैं, कि किस प्रकार
से श्रमुक सेठ था सेठानी को घोखा दिया जाय, कस प्रकार किसी भोली
भाली शिकार को ईश्वर और धमम के बहाने फँसा कर अपना स्वार्थ सिद्ध
किया जाय, इस प्रकार रात दिन इनकी भावनाओं सें ठिफे धोखा देने के
सिवाय सद भावनाओं का विकास तो देखा ही नहीं जाता 1 फिर इन लोगों
ने श्रपना पेट इतना बढ़ा रखा है; कि इनकों चादे मन्दिर और देवालयों से
कितनी ही खाने पीने की चीज मिल जाय ओर चांद कितना ही दान दक्षिणा
मिल जाय, तो भी इन का पेट भरा हें ऐसा कभी देखा नहीं जाता; दर
समय आप लोग इसको किसी ने किसी वस्तु के ,बढ़ाने चिल्लाते हुए दी
देख सकते हैं |
में श्रभी थोड़े दिन हुए राजस्थान उदयपुर में गया था, नाथद्वारा एक
बड़ी प्रसिद्ध जगह है, वहां पर श्री नाथ जी मद्दाराण का मन्दिर दे व्मा
नित्य प्रति ५००) या ७००) रुपया के लग भग भोग लगा करता है किन्तु
श्राश्रय की बात तो यद्द है कि उस पदाथ में से जग भी गरीबों तथा अम्या-
ग्तों को मिलते नहीं देखा गया; वह सारा का सारा बाजार में दुकोनदारों की
User Reviews
No Reviews | Add Yours...