कि जीवन ठहर न जाए | Ki Jivan Tahar Na Jaaye

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Ki Jivan Tahar Na Jaaye by मायामृग - Mayamrig

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मायामृग - Mayamrig

Add Infomation AboutMayamrig

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
नम्नछद्‌मी गर्व-1 मुम्हारे नारकीय जीवन के कारणो का सजावटी लेखा-जोखा रखकर ही पोषित होगी उनकी तर्केपणा-। ज़ो स्वयं तुमसे अपने बौद्धिक यंत्रों का ईन्चन तलाशते हैं उनसे अपनत्व की कामना छोड़ और- लौट जा! जिस दिन- अपने से ही मिले रास्ता निकल भागना- | वरना- रास्तों का विश्लेषण करती अभियंताई बुद्धि से तुम नीले नक्शों के अलावा और पा ही क्या सकोगे २ 25/कि जीवन ढहर न जाए




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now