सिद्धान्तसारसंग्रह भाग - 2 | Siddhantasarasangrah Bhag - 2

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Siddhantasarasangrah Bhag - 2  by नरेन्द्र सेनाचार्य - Narendra Senacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संपादकीय सिद्धान्तसारसग्रहका प्रस्तुत सस्करण द्वितीय वार प्रकाशित किया जा रहा है। विषयकी दृष्टिसे यह ग्रथ तत्त्वार्थाधिगमसूत्र व गोम्मठसारादि सिद्धान्त ग्रथोकी परम्पराका है। इसमे सम्यग्दशन आदि रत्नत्रय तथा जीवादि सात तत्त्वोका स्वरूप विधिवत्‌ सरल रीतिसे समझाया गया है जिसकी रूपरेखा विपयपरिचयसे जानी जा सकती है। सस्क्ृत पद्यात्मक इस ग्रथके रचयिता आचाये नरेन्‍्द्रसेत है जिनका प्रतिष्ठादीपक नामक एक और ग्रथ पाया जाता है तथा जिनका काल विक्रम सवत्‌की वारहवी जतीका मध्यभाग सिद्ध होता है । प्रस्तुत ग्रथका सस्करण प जिनदास पार्ष्वताथ फडकुले ज्ञास्त्री द्वारा तैयार किया गया है। उन्होने मूल पाठ दो प्राचीन हस्तलिखित प्रतियो परसे किया है, उसका हिन्दी अनुवाद भी किया है, प्रस्तावनामे विपयपरिचय, ग्रथके कर्तुत्व व रचनाकाछादिका विवेचन किया है, तथा अनुक्रमणिकादि भी तैयार की है जिसके लिये हम उनके अनुगृहीत है । इस ग्रथका सस्करण और प्रकाशन करानेमे सस्क्ृति सरक्षक सघके सस्थापक ब्रह्मचारी जीवराज भाईकी विशेष रुचि थी। किन्तु हमे अत्यन्त दुख है कि ग्रथका मुद्रणकार्य पूर्ण होनेसे पूर्व ही उनका स्वर्गवास हो गया। हमे आशा है कि अब भी इस ग्रथके प्रकाशनसे स्वर्गीय आत्माकों सतोष लाभ होगा। इस ग्रथमाला का जो यह सशोधन-प्रकाशन कार्य विधिवत्‌ चल रहा है उसमे सघकी ट्रस्ट कमेटी तथा प्रवन्ध समितिके समस्त सदस्योका हादिक सहयोग ही प्रधानत कारणीभूत है। इसके लिये हम उन सव के कृतञ है। हमे विश्वास है कि इस ग्रथके स्वाध्यायसे पाठकोकों जेन सिद्धान्तकी समस्त व्यवस्था समझनेमे सुलभता होगी । सतोषभवन, मु ग्रथमालाके सम्पादक- शौलापूर आदिनाथ नेसिनाथ उपाध्ये १९७२ हीरालाल जैन




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