गांधीजी की अपेक्षा | Gandhi Ji Ki Apeksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
203
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पु
घारासभाओका मोह
मे मातता हू कि धारामभाआमें या अय तिर्वाचित सम्याक्षार्म
किसी न किसी बाग्रसीकों ता जाना ही चाहिये। पहल मे दस मतवा
नहीं था कि जहा चुग़व हा वहा काग्रसियाका उम्मीदवारा करना हा
चाहिये “गन जब मे इस मतवा हू। मरी यह आशा सफर नहां
हु कि समर काग्रसी घारासमाका बहिप्वार बरगे । जब जमाना भा
बदएछा है और स्वराण्य नजंदाव आया है) यरति एसा है ता जहां
चुनाव हाता ह। बढ़ा कांग्रेसी उम्माट्वार हान हो चाहिये । इसमें सम्मान
कभी हतु हा हो नहा सबता सवा ही हतु हा सकती है। बाग्रेस जमा
सम्याकी यह प्रतिष्ठा होना चाहिय और है वि जिसे वह पसार कर
बही चुवावके लिए खडा हो जिस आत्मीको वटू पसट ने कर उसे
दुख ता हाता ही नहा चाहिये, बत्वि उस दूसरी सवाब' हए मुविते
मिल्नवी सुनी होता चाहिये । वास्तेवर्में एसी स्थित्ति नहा है यह
दु खकी बात है।
दूसर चुनाव छड़नमें काग्रेसत प्रा सच बरनेका जरूरत हा
नहा होनी चाहिये | छवृप्रिय मस्याके उम्मीट्वार ला घर बढे चुने
जाने चाहिये । गशद मतटाताआंके लिए सवारीबा इतजाम घर बढ़े
हाना खाहिय। उतहाहरणके रिए पटशाट गाव मसटाताआबा नतियाह
जाना पड़े ता गरीबाबा किराया पेटलाटके सशहार छोग दें। सगरित
छाउमसत्तात्मप् अहिसक सस््थाठी यह एक निशानी है। पसे पर नजर
रखनेवारी सस्या गरादावा सेवा दमा नहीं कर सवती। अगर टागारो
छारार पसेस जीतो जा सवत्तो हो तो अग्रजी सल्ततत जा अपार पसा
छत बर सकती है और करता है सवस प्रिय मानी जायगी। 7विच
हकावत यह है कि चाहा नोवर भी जा बचा बचा तनपाह 'रत है
शा
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