आधुनिक हिन्दी कविता में चित्र - विधान | Aadhunik Hindi Kavita Men Chitr - Vidhan

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Aadhunik Hindi Kavita Men Chitr - Vidhan by रामयतन सिंह - Ramyatan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हझुप विभाये डर मात्र बमरूर रह जाठा है । जहाँ कहीं दो गस्तुए इसकिए साप-साव रक्षी जाती हैं कि बगफ़ा पारस्परिक संम्बन्प स्पप्ट हो जाम गहीं रप-जिभास की पैड हो जाती है रिग्तु एवं सम्मस्पी में एकश्पता अगिदार्प है।' मा इस कह संग हैं. कि कास्याश्मक हूप-विधान का सिद्धान्त कुह़गा पर जापारित है जा समस्त काष्यात्मफ अनुशूतिशें को अमिष्याप्ठ परता है; फिख्दु एक पदार्प गत दूसरे पहार्य पै ठप एक मतोमाद दी दूसरे मसोमाव से शी गई तुए्मा तुधना गहीं है आए्तर से रप-डिपान के रर्र्रद पदायों ढी तुछदा मगोभारों स ममूर्ते से मूर्ख मी प्रणथबा मूर्त की अमूर्त से की जाती है, भौर कमीकभी रूप-दिपाम के स्वहप शी स्याक्या अमृत कौ इमू्े से, मूठ करी मृत से सुना करफे शी जाती है ! तुहता करगा भाषा का सार्दमोम सिद्धान्त है! किम्तु छुदमारमक सिद्धालदों के ढ्रापा ही कास्यात्मक रुप-बियान की पहचान गहीं ली । दिह्यात के तम्यों को भी समझाने के किए सप-विषास का आप्रय छिया जाता है।' डाविता में लुहता की महत्ता सर्मदिदित है क्योंदि कविता में प्राय' बनिषार्ष का उतना महह्त गहीं है जिठना ऋतापा और ब्येग्मा का | कविता की बरमिब्मक्ति सीपी-सादी होगे से बह प्रमाज-यूस्प हो जाती है, उसमें तुतारमकझ भावनाओं फ्रा समा अभिवाय ह मरयणा थं हो उससे रस होया त प्रभाव --एक सीमा 6% मोसिस्ठा का सौ ममाष होगा ।* रूप-पिधान का साम्राग्प बक्तुयत बर्गीकरण हक ही सीमिठ महीं है । €प-वियास एड रा भी हो सकता हैं. जिसे हम स्पझ शष्ट सड़ते हैं। महू रा बस्तुमां की धुहमा में प्रौ थाया शाता है जेठे उपमा। मामबीझरण (सिट्वा४07:०००7) में भी पाया जाता है. मागबीप हिषारों को जह पदार्मों ८ आारोपण में मपूर्त शो मृत और मूग को ममूर्त बतामे की जिया दया अमृत ही ब्रमूत से तुला करमे में इसका मोम रहता है। सापारण कप-दिपात को हम दागिदक तुस्ता तबा अ्सकारों की प्रेणी में रस सइत हैं। श्प गिपास में मृजवारमड़ शक्ति, झा प्रझधता शया रक्त के एश्रीकरप वी शमता भतिषार्य है। इसका शुर्य कान है मिस्मनीरन्त तस्कों एवं विमिस्स मासिक दृशाजं को एयला के स्ुप्त में बॉपना तब मगोमाडों कू रुद्ीम सरम्दरय ऐौज गिक्षएया | इप-रिषान दिश्वणा मीठिक एव मंत्रीन हरणा प्रार्दों को बहन करने हरी इतनी ही घरिक उसमे होगी किस्तु गदोसता श्री क्षोके में बिचितता बी उदमाबसना मे ह्ो। साधारण मारे हम पहुले सही जातते हैं दि्यु बहो हापारघ बात मदि शप-वियात हे पपट से भारती है ठो बह सम्राधारप भर मुखर प्रतीत दे रूपती है इससे हमें बिगेय प्रशार का आभत्द मिलता है! जब हम बुजाइस्या वो उपमा रत 'मूप दूंढ' स देखे हैं शर बुड़ापा साझआर हो रख्या है । मस्पता जिद या शुप-विधाय एक ममहा-्या घस्ट चित्र है बिसझा उपयोग कवि अबजा ऐैरड़ अपने मारददी एवं दिचारों जी म्याक्पा करते हपा उसे गोपसम्प और स्पष्ट १ फिकटाएणाद प्एए प्रद्रणाण घण्ठे 1.0कटए राय 270 काल ट्ञाक #्य 9०८एंलड 20 ज॑ फट प्रछाल) ० 17 वा 51 3205६ 1.७७. ११४४ 50७5 ४ ४दव ६एण३८४, ३1 ६. वाप्रधार रजत एव 5चहवइ९ ब्जपे ३1५




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