भारत का सीमांत | Bharat Ka Simant

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Bharat Ka Simant by जगदीशचन्द्र जैन - Jagadish Chandra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारत का सीमांत १० 'शिक़िप्टिव एयनोलांजी झोफ बंगाल! नाम की छोमपूर्ण पुस्तक के लिए प्रसिद हैं। इसके प्रकाशन के लिए घरवार का भोर से दस हडार रुपये दिये गय थे । एथ्वियाटिक सोसायटी भोंफ बगाल की भ्रोर से पुस्तक का प्रकापन हुप्ता। बैष्टन मूपर एक प्रर्यन्त साहुसी भोर घर्यशील व्यक्ति थे । डास्टन के वे परम मित्र थे प्रौर १८५९ ई० में वे हिन्दुस्तान भागे थे। बूपर धुरू से ही भ्रमण के झ्ोकीन भे, और ददा विदेश बी उन्होंने यात्रा की थी । १८६८ ई० में चीन से तिब्बत होकर उन्होंने पैदल हिम्दुस्तान पहुँचने का प्रयास किया, सेब्नि चीनी सरकार ने उन्हें जान की हबाजत नहीं दी। उधर से जब थे सफल्त न हुए ता एक वर्ष बाद उन्हींने हिन्दु- स्वान होकर पैदल ही चीन पहुँचन की कोध्चिश की | सेकित प्रव की बार फिर उन्हें घोष से ही सीट प्रानां पड़ा। १८७६ ई० में बे पोसिटिकस एजेन्ट यनकर हिन्दुस्तान झ्ाये, भौर दुर्माम्म से उनके द्वी किसी सिपाही ते उनस यदसा सेन के लिए उनकी हस्या कर दी । जे० एरोस ग्रे क्राम के दगीचों के मालिक पे । धसम ने जाम के व्यापार फो वे सीमाश्रान्त के बाहर फैलाना बाहते थे । १८६१ ई० में भारत की प्रिटिष्य सरकार न इस सम्वस्ध मे ससाह-मध्यवरा करने के लिए उन्हें प्रामंत्रित किया था। इसके सिवाय लफ्टिनेंट रोलेट, काठ, बुश्यीप, हरमन प्रादि भनेक युरोपियन ध्रफसर इस क्षेत्र में प्राते-बाते रहे। इममें फ्लसीसी मिध्नरी फादर क्रिक कया सामर खासतौर से उत्सेजनीय है। १८५० ई० में बे दक्षिणी ठिव्वती मिशम के




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