प्रसाद निवेश भाग ३ | Prasad Nivesh Bhag-3

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Book Image : प्रसाद निवेश भाग ३  - Prasad Nivesh Bhag-3

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निवेदन हिन्दी मे वास्तु-शास्त्र पर प्रथम कृतियों का श्रीगणेश मैंने १९४४ ६० में भपने प्रयम्र प्रकाशन--भारतीय-वास्तु-शास्त्र-वास्तु-विद्या एवं पुरनिवेश के द्वारा किया था | उत्त र-प्रदेश-राज्य की झोर से हिन्दी मे ऐतट्रिपयक अनुसन्धातात्मत'ः एवं गवेपणात्मक दद-पग्रन्थ-प्रवाश्न-प्रायोजन मे निम्नलिखित चार ग्रन्यो- १. भारतीय वास्तु-पास्त्र-वास्वु-विद्या एव' पुर-निवेश २. भारतीत वास्तुनद्ास्त्र-प्रतिमा-विज्ञान ३. भारतीय वास्तु-शारत्र-- प्रतिमा-लक्षण ४, भारताय वास्तु-घास्त्र- चिपन्‍्लक्षणम्‌ (1000 एशथ्ञाण15 ० ?.01018) -- पर भनुदान प्राप्त हुआ था। भ्रतएवं हिन्दी साहित्य मे वास्तु शिल्प के ग्रन्थों के प्रणयन का मुझे प्रथम सोभाग्य एवश्रेय प्राप्त हो सा) उत्तर-देश“राज्य वी हिन्दी-समिति ने इनमे से प्रथम दो कृतियों पर पारितो- पिक भी प्रदान किया ) भ्रतएव इस द्िद्ा मे प्रग्रसर होने वे लिये लेखक ने बेन्द्रीय सरवार वे दिक्रूच्दिलय से भी इस प्रवाधन में माहास्याये ग्रापंना बी । १६५६ में शेष छहो ग्रन्थो के लिये पेज़्द्रीय शिक्षा-सचिवात्य से भी प्रनुदान स्वीकृत हो गया। पुन. नयी उद्भावनाओं एवं सतताध्ययता- नुरशान्धान-गवेषण-मनेन-चिम्तनोपरान्त, इसे छहो ग्रन्थों यो निम्न प्रध्ययनों में विभाजित विया :-- भवन निवेश ((1ए॥ ह&ै८10९९६४७1६) प्रषम-भाग झध्ययत एवं झनुवाद द्वितीय-भाग मूल एवं वास्तु-पदावली प्रामाद-निवेश (1 शागएीर हाएा(€लणार) प्रथम-भाग अध्ययत एवं घनुवाद दितीय-भाग मूल एवं वास्तु-शिल्प-पदावयों हि० मूल से तात्पयं मूस-भ्राधार, मूल-परिष्वार एवं मूपत-सिद्धान्तों पर




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