विश्वतत्त्वप्रकाश | Vishvatattvaprakash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
530
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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जीवराज जैन ग्रेथमालाका परिचय
सोलापूर निवासी ब्रह्मचारी बीवराज गोतमचंदजी दोशी कई वर्षो
संसारसे उदासीन होकर धर्मकार्यमें अपनी दृत्ति लगा रहे थे | सन १९४०
| _, यह प्रवछ इच्छा हो उठी कि अपनी न्यायोपार्नित सपत्तिक्रा
उपयोग विशेष रूपसे घमे और समाजक्री उन्नतिकं कार्यमें करें | तदनुसार
उन्होंने समस्त देशका परिभ्रमण कर जैन विद्वानोंप्ते साक्षात् और लिखित
सम्मतिथा इस बातकी संग्रह कीं कि कोनसे कार्यमें संपत्तिका उपयोग किया
जाय । स्फुड मतसंचय कर लेनेके पश्चात् सन् १९४१ के ग्रीष्म काछमें
ब्रह्मचारीजीने तीर्थक्षेत्र गजपंथा ( नासिक ) के शीतल वातावरणमे विद्वानोंक्री
सप्ताज एकत्र की और ऊह्यपोह पूर्वक निर्णयके लिए उक्त विषय प्रस्तुत
किया | विद्वत्सम्मेडनके फलस्वरूप ब्रह्मचारीजीने जेन संस्कृति तथा
साहित्यके समस्त अगोंके सरक्षण, उद्धार ओर प्रचारके हेतुसे ' जेन सस्कृति
सरक्षक सघ * की स्थापना की और उसके लिए ३००००, तीस हजारके
दानकी घोषणा कर दी | उनकी परिग्रहनिवृत्ति बढती गई और सन्
१९४४ में उन्होंने छगभग २,००,०००, दो छाखकी अपनी सपूर्ण संपत्ति
सघको टूरुंट रूपसे अर्पप कर दी | इस तरह आपने अपने संबेस्वका त्याग
कर दि, १६-१-५७ को अत्यन्त सावधानी ओर समाघानसे समाधिमरणको
आराघना की । इसी संघके अतर्गत ' जीवराज जैन ग्रंथमाछा का संचालन
हो रहा है । प्रस्तुत अथ इसी अथमालाका सोलहवाँ पुष्प है ।
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