आश्वमधिकपर्व | Aashvmedhikparv

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Aashvmedhikparv by दामोदर सातवलेकर - Damodar Satavlekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पध्याय ७ | आशभ्यमेधिकपर् नन>५2नन१तथ ०१.५ 2५2५ स्‍क८5८ ९८ ०थ> जन 2५-०-५०५००७०५०७५ ०५ ;५>०-तिजननमनतीलीजन+ल१>+त नल जल चर चल जज ल्‍ विजन कल टू न्‍डल न 57077 ततो निशृत्य संबते परिश्रान्ल उपाविशत | ऋीतलच्छायमासादय न्यओ्रोध बहुशाखिनम्‌ ॥ ३११॥ इति श्रीमहाभारते आश्यमेधघिकपर्ेणि षष्ठोषध्यायः ॥ ऐे ॥ ३१४७ ॥॥ कुछ समयके अनन्तर संबर्त थककर अनेक शाखाओं युक्त न्यग्रोध इक्षकी प्लीतल छायामें बैठ गये ॥ १३ ॥ मदहासारतके भाश्यमेधिकपर्चम छठा अध्याय समाप्त ॥ ६ ॥ १४७ ॥ 8 ७ 5१४ खंवते डयाच-- कथमस्मि त्वया ज्ञात) केन वा कथितो5स्मि ते । ५ __ एतदाच«्व में तक््वमिच्छसे चेत्प्रियं मप्त ॥१॥ संवत बोले- तुमने मुझे किस प्रकार जाना और किप्त पुरुपने तुमसे मेरा परिचय कह दिया ९ यदि तुम मेरे प्रिय होनेके अभिरापी हो, तो इसे यथार्थ रीतिसे मेरे निकट कहो ॥ १॥ सत्य ते ब्लवतः सर्वे संपत्स्यन्ते समनोरथाः । मिथया तु ब्रुवतो सूधा सप्तथा ते फलिष्यति ॥२॥ यदि तुम इस विषयमे सत्य कहोंगे, तो तुम्होरे सब मनोरथ सफल होंगे; झूठ बोलनेसे तुम्हारे सिरके सात टुकड़े हो जायेंगे ॥ २॥ मरुत्त उवाच--- नारदेन भसवान्मह्यमाख्यातों हटता पथि। गुरुपुश्नी ममेति त्व॑ ततो में प्रीतिरुत्तमा ॥३१॥ मरुत्त बोले- आपका परिचय मेंने मागेके बीचमें भ्रमण करनेवाले नारद मुनिके समीप सुना है और उन्होंने ही आपका पता बताया। आप मेरे गुरुपुत्र हैं, यह जानकर आपके विषयर्मे मेरी उत्तम प्रीति ठत्यन्न हुई है ॥ ३॥ | संवते डबवाच-- सत्यमेतद्भवानाह स मां जानाति सच्चिणम्‌ । 0 कथयस्वैतदेक मेक लु संप्रति नारदः ॥४७॥ संवते बोढे- वह नारद मुनि मुझे याज्षिकके रूपमें जानते हैं, यह वचन तुमने मेरे समीप सत्य कह्दा है। अच्छा, मुझसे बताओ, कि अब चह कहां हैं ? ॥ ४॥




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