ब्रह्मविद्या का मूलग्रन्थ | Brahmavidya Ka MulGranth

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Brahmavidya Ka MulGranth by रावबहादुर श्यामसुंदरलाल - Raobahadur Shyam Sunderlal

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रावबहादुर श्यामसुंदरलाल - Raobahadur Shyam Sunderlal

Add Infomation AboutRaobahadur Shyam Sunderlal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
चविपय हू. दे. जे श ० हु क्ड 9 हा + (फछलका याद क्या नहा रहता जन्मान्तर--का अनुभव कर्क जाश्त्‌--में मनुष्य स्थूल शरीरसें कास करता है जो थक जाता है सन जीव--ईश्वरांदा है वि . देवी चिनगारी है पर ् 0 # ५० किध . और इंश्वरपर प्रइन असाध्य नहीं हैं योगसे जाने जा सकते हैं जीच --जातिगत का व्यक्ति करण या अहता या हे मनुप्यताकों प्राप्त होना ही कि घरेलू जानवरोंसे सनुप्य बनता है ... . घरेलू जानवर सात शोलीके होते हैं जीवन--असली का दिन जीव. पुंज या पुंजजीव--के सिद्धांतसे पछुओं के स्वसावकी व्यवस्था ... कर ज्ञातिगत जीवका नाम है मी जातिगत सिंहोंका .... .. ग सिंहोंके की डोलभर पानीसे उपसा जीव--व्यक्तिगत जैसा मनुप्यमें जि न 2 हा ४8 % .. जातिगत जैसा पु आदिसें कप जीवात्मा--इईंश्वरांश और ईश्वरकी नांई त्रिसूर्तिक # .... ( आत्मा बुद्धि मच ) है... ... ध््ट पट २७ २७ तो २० पुष्दु पद पू ७ कक तट प्द तट




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now