श्री अन्तगडदशा सूत्र | Shree Antgaddasha Sutra

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Shree Antgaddasha Sutra by चन्द्रकुमार जैन - Chandra Kumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[१७] फूल चढ़ा घटनो को टेक, बन्दन करती थी भावना घर ! उसको पूजा सुशत्रपा से, वह देव प्रसन्‍्त हुथ्ना भारी, ग्रतुकम्पा ला एक करी योजना, जिसकी यह लीतवा सारी। उस ही प्रभाव से महारानी, तूम और सुलसा दोनो नारी, एक साथ ही ऋतु मती होती और साय ही होती गर्भ घारी । एक साथ गर्भ पालन करती, बच्चे भो साथ जन्मते थे , तेरे तो सुन्दर होते लाल, उसके मृत बच्चे होते थे। उसके मृत बच्चो को लाकर, वो तुरत तेरे यहा पहु चाता , तेरे बच्चों को ले जाकर, वो देव सुलसा के रख झाता | नो महिना साढ़े सात रात, के बाद प्रसव होता था साथ , अनुफम्पा ला सुलसा पे देव ने,, काम किये सत्र अपने हाथ । अति मुक्तकऊ मुनि के वचन सत्य, कहे प्रभू, देवकी सच मानों , सुलसा गाथा पत्नि के नहीं, ये सभो पुत्र अपने जानो ! दोहा;ः--प्रभू के मुख से देगकी, सुन सारा विस्तार , हृदय में धारण किया, हर्पित हुई अपार । पन्द्न कर प्रभ्‌ को गई, जहां थे छः अणगार, पत्र श्र मवश स्तनों से; वही दूध की ध्यर॥ ५ ९.» कक 5 हे नेना ऑस हमे के, प्रफूलित सारा अंग। कस टूटी कंचुकी की; आभूषण हुये तंग || छ ही <& पजें-राधेश्याम |, वर्षा की धारा पडने से, ज्यों कंदम पुष्प विकसित होता , उन छह पुत्रो को देख २, त्यो रोम २ हित होता। बहुत काल तक रही निरखती, मुनियो की देवकी भहारानी , फिर वन्दन कर वापिस पहुँची, जहा बेठे थे भगवन ज्ञानी |




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