श्रंगार शतक | Sriangaar Satak

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Sriangaar Satak by बाबू हरिदास वैध - Babu Haridas Vaidhya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५ १ कामेन विजितों ब्रह्मा, कामेन विजितों हरित । कासेन विजितः शम्भु, शक्रः कासेन निर्जितः ॥ जर्थात्‌ू कामदेवने ब्रह्मा, विष्णु, मदेश और सखुरेश--वइन चारोंको जीत लिया । जब भगवान कामदेवने गेखों-ऐसोंको दो अपने वश करके, मचमाने नाच नचाये, तब और किस की कहीं जाय? सार्राश यह, भगवान कामदेव सबसे अधिक वलवान, हैं ; इसीसे कवि महोदय, सब देवताओंको छोड़ सगवान्‌ कामदेवकों ही नमस्कार करते हैं । पाश्चात्य विद्वानोमेंसे एस गोथे नामक महापुरुष कहते हैं :द--एपफॉंत कं 676० 9. ए0806, 806. पाष08घ6 धिाईडि पु 15 तेट०लार60.” कामदेव खदा छल करता हैं, जो उसका विश्वास करता है, वह घोखा खाता है। कोई कुछ कहे, दम तो यद्दी कहेंगे कि, खूबसूरतीमें बड़ी क्षमता है। खूबसूरती पुरुष को अपनों ओर उसी तरह खींचती है ; जिस तरद चुम्बक पत्थर लोहेको खींचता है। पोप सद्दोद्यने कहा भी है-- *86घपा५ु ता8फ़ा5 एड साधि। 9 आग छ 6 ॥ाए,” सुन्दरता पक चालके द्वारा भी दमको अपनी सर खींच सकती है। चेनिंग मद्दोदय भी कहते हैं--“96७पि 15 80. 811-6/ए9तां08 फा886706.” सौन्दर्य की खचंत्र सत्ता है। मतलब यह है, कि पुरुष सोन्द्य्य॑ का दास है। जिसमें भी, बक़ोल लावेठ महाशयके “फाकापीड 09165 फिेण्, & फा0एाछा 28166- 466.” साध्वी स्री संसारका सब्वचॉचम पदार्थ है ; अतः ऐसे




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