अथर्ववेद गृहस्थाश्रम भाग - 3 | Atharvaved Grihasthashram Bhag - 3

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Atharvaved Grihasthashram Bhag - 3 by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अथर्ववेद- [ भाग तीसरा ] “मूह स्था श्रम! विषयानुकमणिका विषय भूमिका एविन्र गहस्थाश्रम (का ६ स्‌ १९२) पिन गृहस्थाभ्रम छुलवधू-सूक्त (कल १ व्‌ १६४) एलवधू- सूक्त पद! प्रसाव प्र्नावका क्रतुमोद्‌र बरकी परीक्षा परिके गुणघर्म भधू-परीक्षा कस्याके गुण मंगनीका समय सिएकी सजावट मगतोरे पश्चात्‌ विवाह कन्णके लिये बर (रा ६, छू ८२) कम्याके लिये चर विवाहका मंगठ कार्य (का २, मू २६) विबाहक। माल फार्य बरक़ी योग्यता बषूकी पोग्वता विवाइके पश्चात्‌ ऐश्पैक़ी का पुरषका स्थान पतिके छिपे घन विवाह (थां ६ स्‌ ६०) विवाह-प्रकरण (का १७, यू १) विधाह-प्रकरण (कं, १७, रू २) है >विषय विधाइ-प्रफरण वैदिक विवाइका खवरुप अपम सूक्त दो बौर सोम पे बदतका रप दहेज वरना झौर सवा संबरप सूहस्थाअमका आदशे प्राइणोंको घत और वद्धदाद पुर सीका यश्ष न पहने हस्पाढा यु सरस्पवद्वारसे धन कमाभो गैरक्षा सरह माप शेगली बनो स्रीकी इच्छा स्री कैसी हो गृहस्थीका स्लात्राज्य ब्षिर्याका छृत कातना पाणिग्रृण केशोंकी सुंदरता चोरीका णह त खाझों बराठपर रथ द्विदीय सूक्तका विधार विगाइका छम्रय चशसे यहमगश यु दूर हों ध | ण प् पे ५० १ है भर




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