सांख्यदर्शन | Sankhya Darshnan

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Sankhya Darshnan by श्री कृष्णा दास - Shree Krishna Daas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र्‌ « सांख्यदशेन। शर्में फूलही नहीं होता तो उसके नाशका उपाय दया है अब इस सैदेह निवारणके लिये उत्तर यह है कि यह दृष्टांव अयोग्य है अपने अपने कार्य उत्पन्न करनेकी शक्ति द्रव्यमें जबत्क द्रष्य है बनी रहतीहे यथा दाहसे रहित अग्निका होना कहीं देखनेमें नहीं आता इसी प्रकारसे अपने अपने कार्य, उत्पन्न करनेकी शक्ति अत्येक पदार्थमें होती हे यह शक्ति अनागत ( भविष्यत ) कालमे प्रकट होनेवाली द्र॒ब्यमें स्थित रहती है इससे जवतक चित्तकी सत्ता है तवतक अनागत ( होनेवाढे ) *खके सत्ताका अजुमान होता है इसका निवृत्त होना पुरुपाय है ( शंका ) ऐसा माननेमें दुःख निवृत्त होना कहनाही असंगत है क्‍्यों- कि दुःख चित्तका धर्म है पुरुषमें उसकी निवृत्तिका होना संभव नहीं है ( उत्तर ) यह कहना यथार्थ नहीं है जो पुरुष दुःख रहित है तो अदण मननसे अनन्तर दुःसके नाइके हहैये प्रंगशत्त न होना चाहिए क्योंकि साध्य उपायमें जब फलका निश्चय होता है तर्भी प्गृत्ति दोती है पिना फलके निश्चय प्रवृत्ति नहीं होती दुःखके अभाव फलकी पर्णन करनेवाली श्रेति यह निश्चय कराती हे कि आत्मा नित्य दुःख रहित नहीं होता ज्ञान होनेपर दुःख रददित_ होता है हुति पद है ' ५ तरति शोकमात्मविद्‌ विद्वान इपशोका जहाति। अर्थ आत्माका जाननेवाला शोकसे तरजाता दे ज्ञानवान्‌ हप शोक दोनोंकी स्पागदेतादै पुरुष यद्यपि निज शुद्धरूपसे दुःख रहित शुद्ध मुक्त इ तथापि अ- विद्यासे पुरुषमें दुःख सुस होते हे अविद्यासे रहित ज्ञान प्राप्त होनेकी अवस्थार्मं संसारी दुःख सुखसे रद्दित आनन्दमय मुक्तदप होता ई यया यह कहा है “न नित्यशुद्धबुद्धभुक्तस्य भावस्य तथागस्तथागाहते । कद अर्थ-नित्य शुद्ध बुद्ध मुक्त पुरुषको प्रकृतिके संयोग विना बंध व' : छुःखवा संयोग नहीं है तिससे अविद्या भ्रमसे यया स्फटिक शुद्ध शुक्ष रूप होतादे परंतु अरुण रुप आदि संयुक्त द्रव्यंके प्रतिबियत्ते - उसीके झुपसे भाशित होता है इसी अकारसे उपाधि द्वारा धुरुफनो दु!ःस भोगका मम्धंप होता है इसेके निउत्त दोनेकों पुरुषाथ कहना यथाये है, संक्षेप




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