श्रीश्रीविष्णुपुराण | Shrishrivishnupuran
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
82 MB
कुल पष्ठ :
642
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अ० ४ ] प्रथम अंश २३
तोयान्तःखां पहीं ज्ञात्वा जगत्येकाणवीकृते । सम्पूू्ण जगत जल्मय हो रहा था । इसलिये
अनुमानात्तदुद्धारं कतुंकामः प्रजापति; ॥ ७॥ | प्रजापति ब्ह्माजीने अनुभानसे प्रथ्रिबीको जरके भीतर
कस्लितन ये | जान उसे बाहर निकालनेकी इच्छासे एक दूसरा
अकरोत्खतनूमन्यां कल्पादिषु यथा पुरा। | शरीर धारण किया । उन्होंने पूत्न-कल्पोंके आदियें जैसे
मत्स्यकूमोदिकां तदद्वाराहं॑ वपुराखितः ॥ ८ ॥ | मत्स्य, कूर्म आदि रूप धारण किये थे वैसे ही इस
वेदयज्ञमयं रूपमशेषजगतः. खितौ । वाराह कल्पके आरम्भमें देवयज्ञमय वाराह् शरीर ग्रहण
खिंत सिराल्यॉ सी: हा किया और सम्पूर्ण जगत्की स्थितिमें तत्पर द्वो सबके
0 कि है ख काश अजापति॥। | _दात्मा और अविचलछ रूप वे परमात्वा प्रजापति
जनलोकगतेस्सिद्धस्सनकाधर भिष्ठदुतत1 ै। ब्रक्माजी, जो पृथित्रीको धारण करनेवाले और अपने ही
प्रवविश तदा तोयमात्माधारों घराधरः॥१०॥ अश्रेयसे खत हैं, जन-छोकस्थित सनकादि रिद्धेशरों-
से स्तुति किये जाते हुए जलमें प्रविष्ट हुए ॥७-१०॥
क्ष्यतंत ग है 3५
निरीक्ष्य त॑ तदा देवी पातालतलमागतम् 1 तब॒ उन्हें पाताललोकमें आये देख देवी वसुन्धरा
तुश्ाव प्रणता भूत्वा भक्तिनम्रा वसुन्धरा ॥११॥ अति भक्तिविनम्र हो उनकी स्तुति करने छगी ॥ ११ ॥
जलता प्ृथिवी बोली-हे शाह्न, चक्र, गदा, पद्म धारण
नमस्ते पुण्डरीकाक्ष शझ्डूचक्रादाधर। करनेवाले कमलनयन भगवन् ! आपको नमस्कार है |
+ सत्तो पूर्व | आज आप इस पातालतछसे मेरा उद्धार कीजिये । पूत
मामुद्धरासादय त्वं त्वत्तो5ह पूर्वेम्त्थिता ॥१२॥ | कषलमें आपहीसे मैं उत्पन्न हुई थी | १२ || हे जनाद॑न '
त्वयाहमुद्ध्ृता पूर्व त्वन्मयाह जनादन | पहले भी आपहीने मेरा उद्धार किया था | और है
| प्रभो ! मेरे तथा आकाशादि अन्य सब भूतोंके भी
तथान्यानि च भूतानि गगनादीन्यशेषतः ॥१३॥ | आप ही उपादान-कारण हैं ॥ १३॥ हे परमात्मखरूप !
| आपको नमस्कार है। हे पुरुषात्मन् ! आपको नमस्कार
' हैं | हे प्रधान ( कारण ) और व्यक्त (कार्य) रूप!
प्रधानव्यक्तमूताय. कालभूताय ते नमः ॥१४॥ | आपको नमस्कार है | हे काल्खरूप ! आपको
' बारंबार नमस्कार है ॥ १४ ॥ है प्रभो ! जगतकी
| सृष्टि आदिके लिये ब्रह्मा, विष्णु और रुद्वरूप धारण
सगादिषु प्रभो ब्रह्मविष्णुरुद्रात्मरूपध्ृक।१५॥ करनेवाले आप ही सम्पूर्ण भूतोंकी उत्पत्ति, पालन
और नाश करनेवाले हैं ॥|१७५॥ और जगवके एकार्णव
रूप ( जल्मय ) हो जानेपर, हे गोविन्द ! सबको
शेषे त्वमेव गोविन्द चिन्त्यमानी मनीषिभिः ॥१६॥ मक्षणकर अन्तमें आप ही मनीषिजनोंद्वारा चिन्तित होते
हुए जहमें शयन करते हैं॥ १६ ॥ हे प्रभो !
आपका जो परतत्त है उसे तो कोई भी नहीं जानता;
अवतारेषु यद्रपं तदचेन्ति दिवोकसः ॥१७॥ अतः आपका जो रूप अवतारोंमें प्रकट होता हैं उसी-
नमस्ते परमात्मात्मन्पुरुषात्मन्नमो5स्तु ते ।
त्वं कतों सबंभूतानां त्वंपाता लें विनाशकृत् ।
सम्भक्षयित्वा सकल जगत्येकाणंवी ते ।
भवतो यत्परं तत्व॑ तन्न जानाति कश्वन ।
मे की देवगण पूजा करते हैं || १७॥ आप पखह्मकी
त्वामाराध्य पर ब्रह्म याता मुक्ति मुपनक्षवः | हों, आगधणों- बरी सतत: मुक्त: होते है
वासुदेवमनाराध्य को मोक्ष समवाप्स्यति ॥१८॥ मभछा वासुदेवकी आराधना किये बिना कौन
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