जच्चा और बच्चा | Jachha Aur Bachha

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Jachha Aur Bachha by श्री जगन्नाथ कपूर - Shree Jagannath Kapur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषी साता ] श्भ डोकर सातवे सद्दीने तक हर सहीने से एक सरतवा सातवें महोने में दो सरतवा आठवें सहीने में दो मरतवा और नें सहीने में जहाँ तक सम्भव हो हर इफ्ते ऐसी परोक्षाएँं होनी चाहिये । शुरू से दी इस तरह के डाकटरी निरीक्षण करवाने से झारो चल कर तकलीफ़ भी कम होती है. श्रौर झान्य फ़ायदे थी होते हैं। इसका पक नतीजा तो यह होता है कि झगर स्त्री को किसी तरह की छूत की जैसे गर्मी छातशक या दूसरी ससत पीसारी है जो जन्सने पर बच्चे को भी दो सकती है तो उसका इलाज वहुव पहले से झुरू हो जाता है। याद में वच्चे के जन्स के समय इन बीमारियों का इलाज श्रवसर वेकार होता है और वच्चे के उनसे झछता रहने का चुत कम सौका रहता है। अक्सर ऐसी वीसास्यों का इलाज देर से शुरू करने में मां और बच्चे दोनों की ज़िन्दगी खतरे में पढ़ जाती है+#। इसीलिये स्त्री के गर्भवती होने पर उसके खूब का तन्दुरुस्ती का छौर खास तौर से उसके पेशाब का परीक्षा + उदाहरण के लिये जिस स्त्री को गर्मी को बीमारी होगी श्रौर श्रगर उसका इलाज बच्चा जन्मने से बहुत काफी पहले न किया जायगा तो पैदा होने पर उस बीमारी के कीढ़े बच्चे के खून में अवश्य रहेंगे । एक तो ऐसी स्त्री के बच्चे सब मरे हुये होंगे श्रौीर अगर जीवित हुये भी सो वे शरीर के रोगी श्रौर दिमाग़ के कमज़ोर होंगे श्र हमेशा ऐसे ही रहेंगे । कभी-कभी इसी वजह से बच्चे जन्म के श्रन्वे भी होते हैं |




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