श्रीभागवाद्गीता भाग ३ | Shrimadbhagwatgeeta (vol - Iii)

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Shrimadbhagwatgeeta (vol - Iii) by हंस्स्वरूपी महाराज - Hansswaroopi Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कब ऑमडराद्ीता [ भध्या०३] गे 0 सतीन्दियमव्यक्तमक्तरं निगुणं विभुम । 4५ ध्यानासाध्यं चसर्वेषां परमात्मानमीश्वरम्‌॥ 10 स्वेच्छामय स्वेरुष स्वेच्छारुपधर परस्‌। 11% ६ सिश्लिप्तं परसं ब्रह्म बीजरूपे सनातनम्‌ । स्थूलाल्थ्थूलतरं प्राप्तततिसूज्ममदशेनस्‌ ॥ रिथितं सवेशरीरेषु साक्षीज्यमदश्यकसु । शरीखन्त सबुणमशरीरं गुणोत्करम्‌ । प्रकृति: प्रकृतीशंच प्राकृत पूछते:परस ॥ , स्वेश स्वेरुष च सर्वान्तकरमंव्यपम । .. सर्वाधार निराधारं निव्यूह स्तोमि किविशुम ॥ अहा | वह देखो | सामने एक बहुत बडा गम्भीर सागर लहरें लेताहुआ देखपडता है जिप्में एक नडका बहती चली जारही है और उस नउकापर एक कोई पथिक अपनी गठरी मोटरी लादे किप्ती करे- घारसे पार उताददेनेकी श्रा्थना कररहा है। चलो | थोडा आगे बढ़कर देखो तो सही | कसी लीला है ! - आगे बढकरं-- सखे ! यह तो एक अद्तलीला दृष्टिम आरही है। यह तोपरम. अपारे महाभारतसंग्राम रूप गंभीर सागरके माभधार में गीता नामकी नउका बही जारही है, जिसपर अज्जुन नामका एक पथिक अपने शुभाशुभ कर्मोंकी गठंरी मोटरी लादेहुए जगद्मिराम घनश्यामरूप परम मवीण कर्णधारसे पार उतारदेनेकी पराथेना करहा है। चलो ! शीघ्र चलो. ! हमलोग भी इसी नउकापर चढ अजजुनके साथ-साथ उसी . सांवले कर्णधारसे प्रुथना करतेहुए भट भवसागरके पार होजावें ॥




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